श्री गंगा स्त्रोतम (Shri Ganga Stotram) माता गंगा को समर्पित एक प्राचीन स्तोत्र है। इस स्तोत्र के माध्यम से माँ गंगा की महिमा, उनके गुण और दिव्यता की प्रशंसा की जाती है। यह स्तोत्र हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसकी रचना आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी।
श्री गंगा स्त्रोतम के पढ़ने से अनेक लाभ होते हैं। इसके माध्यम से हमारे मन में शांति और सकारात्मकता आती है। यह स्तोत्र पापों को दूर करता है और हमारे जीवन में समृद्धि की प्राप्ति होती है। स्तोत्र को नियमित रूप से पढ़ने से शारीरिक और मानसिक रोगों का निवारण होता है।
Ganga Stotram By Adi Shankaracharya
श्री गंगा स्तोत्रम् की रचना श्री आदि शंकराचार्य ने की थी। इसमें चौदह छंद हैं। अंतिम तीन श्लोक इस श्लोक को पढ़ने और सुनाने के लाभों का उल्लेख करते हैं। इस श्लोक को श्री गंगा स्तवम् भी कहा जाता है।
गंगा स्त्रोतम (Ganga Stotram) को सुबह या सायंकाल को पढ़ा जा सकता है। इसे ध्यान से और भक्ति भाव से पढ़ना चाहिए। स्तोत्र को दिन में एक बार या नियमित रूप से प्रतिदिन पढ़ने से इसके लाभ अधिक होते हैं।
Ganga Strotam Lyrics in Hindi and Sanskrit
गङ्गा स्तोत्रम्
देवि! सुरेश्वरि! भगवति! गङ्गे त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।
शङ्करमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥ 1 ॥
भागीरथिसुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥ 2 ॥
हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे ।
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥ 3 ॥
तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।
मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥ 4 ॥
पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे खण्डित गिरिवरमण्डित भङ्गे ।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवन धन्ये ॥ 5 ॥
कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गङ्गे विमुखयुवति कृततरलापाङ्गे ॥ 6 ॥
तव चेन्मातः स्रोतः स्नातः पुनरपि जठरे सोपि न जातः ।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे ॥ 7 ॥
पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे ।
इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥ 8 ॥
रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम् ।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ॥ 9 ॥
अलकानन्दे परमानन्दे कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये ।
तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः ॥ 10 ॥
वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
अथवाश्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः ॥ 11 ॥
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गङ्गास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥ 12 ॥
येषां हृदये गङ्गा भक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः ।
मधुराकन्ता पञ्झटिकाभिः परमानन्दकलितललिताभिः ॥ 13 ॥
गङ्गास्तोत्रमिदं भवसारं वाञ्छितफलदं विमलं सारम् ।
शङ्करसेवक शङ्कर रचितं पठति सुखीः तव इति च समाप्तः ॥ 14 ॥
GANGA STOTRAM LYRICS IN ENGLISH
dēvi! surēśvari! bhagavati! gaṅgē tribhuvanatāriṇi taraḻataraṅgē ।
śaṅkaramauḻivihāriṇi vimalē mama matirāstāṃ tava padakamalē ॥ 1 ॥
bhāgīrathisukhadāyini mātastava jalamahimā nigamē khyātaḥ ।
nāhaṃ jānē tava mahimānaṃ pāhi kṛpāmayi māmajñānam ॥ 2 ॥
haripadapādyataraṅgiṇi gaṅgē himavidhumuktādhavaḻataraṅgē ।
dūrīkuru mama duṣkṛtibhāraṃ kuru kṛpayā bhavasāgarapāram ॥ 3 ॥
tava jalamamalaṃ yēna nipītaṃ paramapadaṃ khalu tēna gṛhītam ।
mātargaṅgē tvayi yō bhaktaḥ kila taṃ draṣṭuṃ na yamaḥ śaktaḥ ॥ 4 ॥
patitōddhāriṇi jāhnavi gaṅgē khaṇḍita girivaramaṇḍita bhaṅgē ।
bhīṣmajanani hē munivarakanyē patitanivāriṇi tribhuvana dhanyē ॥ 5 ॥
kalpalatāmiva phaladāṃ lōkē praṇamati yastvāṃ na patati śōkē ।
pārāvāravihāriṇi gaṅgē vimukhayuvati kṛtataralāpāṅgē ॥ 6 ॥
tava chēnmātaḥ srōtaḥ snātaḥ punarapi jaṭharē sōpi na jātaḥ ।
narakanivāriṇi jāhnavi gaṅgē kaluṣavināśini mahimōttuṅgē ॥ 7 ॥
punarasadaṅgē puṇyataraṅgē jaya jaya jāhnavi karuṇāpāṅgē ।
indramukuṭamaṇirājitacharaṇē sukhadē śubhadē bhṛtyaśaraṇyē ॥ 8 ॥
rōgaṃ śōkaṃ tāpaṃ pāpaṃ hara mē bhagavati kumatikalāpam ।
tribhuvanasārē vasudhāhārē tvamasi gatirmama khalu saṃsārē ॥ 9 ॥
alakānandē paramānandē kuru karuṇāmayi kātaravandyē ।
tava taṭanikaṭē yasya nivāsaḥ khalu vaikuṇṭhē tasya nivāsaḥ ॥ 10 ॥
varamiha nīrē kamaṭhō mīnaḥ kiṃ vā tīrē śaraṭaḥ kṣīṇaḥ ।
athavāśvapachō malinō dīnastava na hi dūrē nṛpatikulīnaḥ ॥ 11 ॥
bhō bhuvanēśvari puṇyē dhanyē dēvi dravamayi munivarakanyē ।
gaṅgāstavamimamamalaṃ nityaṃ paṭhati narō yaḥ sa jayati satyam ॥ 12 ॥
yēṣāṃ hṛdayē gaṅgā bhaktistēṣāṃ bhavati sadā sukhamuktiḥ ।
madhurākantā pañjhaṭikābhiḥ paramānandakalitalalitābhiḥ ॥ 13 ॥
gaṅgāstōtramidaṃ bhavasāraṃ vāñChitaphaladaṃ vimalaṃ sāram ।
śaṅkarasēvaka śaṅkara rachitaṃ paṭhati sukhīḥ tava iti cha samāptaḥ ॥ 14 ॥
What are the benefits of chanting Ganga Strotam?
गंगा स्त्रोतम (Ganga Strotam) का जाप करने के लाभ व फायदे निम्नलिखित हैं:
- पाप नाश: गंगा स्त्रोतम का पठन करने से पापों का नाश होता है और हमारे अन्तरंग में शुद्धि होती है।
- शांति और समृद्धि: स्तोत्र के जाप से मन में शांति और सकारात्मकता की प्राप्ति होती है और जीवन में समृद्धि आती है।
- रोग निवारण: गंगा स्त्रोतम के नियमित जाप से शारीरिक और मानसिक रोगों का निवारण होता है।
- ध्यान और चित्त शुद्धि: स्तोत्र का जाप करने से मनुष्य का ध्यान लगता है और उसका चित्त शुद्ध होता है।
- आत्मिक उन्नति: गंगा स्त्रोतम के पाठ से आत्मिक उन्नति होती है और हमारे आत्मा का विकास होता है।