Ambikeshwar Mahadev Temple Rajasthan feat

Ambikeshwar Mahadev: अंबिकेश्वर मंदिर राजस्थान और श्रीकृष्ण से जुड़ें तथ्य

आमेर का प्राचीन अंबिकेश्वर महादेव मंदिर राजस्थान (Ambikeshwar Mahadev Temple Rajasthan) की राजधानी जयपुर के प्रिय स्थलों में से एक है और यहां की महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है।

इस मंदिर का नाम आमेर क्षेत्र में स्थित अम्बेर किले के पास स्थित ‘शीला देवी’ मंदिर के पास स्थित है। यहां के अंबिकेश्वर महादेव मंदिर का महत्वपूर्ण संदर्भ महाभारत के युद्ध कांड में पाया जाता है, जहां कहा गया है कि भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में इस स्थान पर मंदिर की स्थापना की थी। कई लोगों का दावा है कि यह मंदिर 5000 साल पुराना है

अंबिकेश्वर महादेव मंदिर राजस्थान में कहां पर है :

आमेर के इस मंदिर का स्थान सागर मार्ग पर स्थित है और यह आमेर फोर्ट के पास स्थित है। यह स्थल वास्तुकला में भी अत्यंत उत्कृष्ट है, जिसमें श्रीकृष्ण के प्रतिमा के साथ भगवान शिव की मूर्ति भी स्थापित है।

अंबिकेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास

महाभारत के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने महाराज उदयन के साथ आमेर क्षेत्र में आकर विश्राम किया था। उन्होंने अपने अद्वितीय रूप के रूप में अपने भक्तों को आशीर्वाद दिया और यहां पर अंबिकेश्वर महादेव के रूप में स्थान स्थापित किया। महाभारत के इस संदर्भ में श्रीकृष्ण के भक्त और पंडित द्वारा इस मंदिर का संचालन किया जाता था, और यह स्थल उनकी भक्ति का केंद्र बन गया था।

इसके अलावा, कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर यहां विशेष पूजा और आराधना की जाती है। मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के प्रतिमा की पूजा की जाती है और भक्तों का आगमन बढ़ते भक्ति और आस्था की भावना से भर जाता है।

द्वापर युग में, भगवान श्रीकृष्ण का आगमन नंद बाबा के साथ आमेर गाँव में हुआ था। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के पिता नंद जी और उनके साथी ग्वालों ने अपने बच्चों के साथ आमेर क्षेत्र में विश्राम किया था।

इस घटना के परिणामस्वरूप, भगवान श्रीकृष्ण ने भगवान शिव की पूजा की और इसी स्थल पर उन्होंने अपना मुंडन संस्कार करवाया। आदिकाव्य महाभारत में इस घटना का उल्लेख मिलता है। इस दर्शनीय महत्वपूर्ण स्थल के चलते यह मंदिर अपनी ऐतिहासिकता और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है और यहां के भगवान शिव की पूजा की जाती है।

यह मंदिर अपने धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के साथ ही भक्तों के बीच हर पीढ़ी में महत्वपूर्ण रूप में जाना जाता है, जिसके पास से बड़ी संख्या में भोले के भक्त आकर उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आते हैं। इसके साथ ही, यहां श्रीकृष्ण के मुंडन संस्कार की स्थली के रूप में भी महत्वपूर्णता है, जिससे यह स्थल भगवान के अद्वितीय लीलाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाता है।

अम्बिकेश्वर महादेव मंदिर की कथा है जो कछवाह राजवंश के कुलदेवता माने जाते हैं:

कई सदियों पहले, यह कछवाह राजवंश के कुलदेवता भगवान शिव की पूजा करने के लिए विशेष रूप से माने जाते थे। इसी राजवंश के एक राजा काकिलदेव थे, जिन्होंने इस महान शिवलिंग के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा को अपनाया था।

एक दिन, राजा काकिलदेव ने देखा कि एक गाय सुनसान जगह पर दूध दे रही है। यह घटना बार-बार होने से उन्हें गहरी अद्वितीयता का आभास हुआ। उन्होंने देखा कि गाय न किसी संरचनात्मक स्थान पर दूध देने जा रही है और न ही उसके आसपास कोई संरचना बनाई हुई है।

राजा काकिलदेव ने इस घटना को एक दिव्य संकेत मानकर तत्वात्मक मार्गदर्शन पाया और उन्होंने इसी जगह पर खुदाई करवाई। उनके प्रयासों से एक अत्यंत भव्य शिवलिंग प्रकट हुआ, जिसे बाद में “अम्बिकेश्वर महादेव” के नाम से पुकारा गया।

राजा काकिलदेव ने इस दिव्य घटना के प्रति अपनी अद्वितीय श्रद्धा का प्रकटीकरण किया और उन्होंने इसी स्थान पर भव्य मंदिर की नींव रखने का निर्णय लिया। इस प्रकार, “अम्बिकेश्वर महादेव” मंदिर की नींव रखी गई और यह मंदिर बड़े समय तक शिव-भक्तों का सानिध्य बना रहा।

अम्बिकेश्वर महादेव मंदिर की वास्तुकला :

"अम्बिकेश्वर महादेव"

ये शिव मंदिर 14 खंभों पर टिका है , इस मंदिर का भूतल लगभग 22 फुट गहरा है और बारिश के समय यहां की भूगर्भ में जल ऊपर तक आ जाता है, जिससे मंदिर में एक अद्वितीय दृश्य उत्पन्न होता है। यहां का मूल शिवलिंग जलमग्न हो जाता है और इसके बाद जल भूगर्भ में वापस चला जाता है, जबकि मंदिर के ऊपरी भाग में डाले गए जल का भूगर्भ में प्रवेश नहीं होता है।

इस प्रकार, “अम्बिकेश्वर महादेव” मंदिर अपनी ऐतिहासिकता, धार्मिकता, और भव्यता के साथ प्रसिद्ध है और यह राजपूतों के कुलदेवता के रूप में सम्मानित होता है।

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