सूर्याष्टकम् एक प्राचीन संस्कृत रचित श्लोक जिसका पाठ सूर्यदेव की महिमा और शक्तियों की प्रशंसा के लिए किया जाता है। यह ग्रंथ संगीत की तरह स्वरों और भावनाओं का सही संयोजन करता है जिससे चित्त शांति प्राप्त होती है।
यह पाठ आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और सूर्यदेव की पूजा और स्तुति का अद्वितीय तरीके से प्रस्तुतीकरण करता है।
सूर्याष्टकम् पाठ आदि शंकराचार्य के सन्देशों और सूर्यदेव के प्रति भक्ति की मिश्रण है, जो आत्मा के उन्नति और शांति की दिशा में मदद करता है।
सूर्याष्टकम् की रचना आदि शंकराचार्य ने की है, जो एक प्रमुख आध्यात्मिक आचार्य और वेदान्ती थे। उन्होंने इस सूर्याष्टकम् में सूर्यदेव की महत्ता को व्यक्त किया और उनकी प्राकृतिक शक्तियों की स्तुति की है।
सूर्य अष्टक का पाठ हिंदी में
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मभास्कर
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोस्तुते
सप्ताश्व रध मारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजं
श्वेत पद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहं
लोहितं रधमारूढं सर्व लोक पितामहं
महा पाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहं
त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्म विष्णु महेश्वरं
महा पाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहं
बृंहितं तेजसां पुञ्जं [तेजपूज्यं च] वायु माकाश मेव च
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहं
बन्धूक पुष्पसङ्काशं हार कुण्डल भूषितं
एक चक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहं
विश्वेशं विश्व कर्तारं महातेजः प्रदीपनं
महा पाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहं
तं सूर्यं जगतां नाधं ज्नान विज्नान मोक्षदं
महा पाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहं
सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडा प्रणाशनं
अपुत्रो लभते पुत्रं दरिद्रो धनवान् भवेत्
आमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्धिने
सप्त जन्म भवेद्रोगी जन्म कर्म दरिद्रता
स्त्री तैल मधु मांसानि हस्त्यजेत्तु रवेर्धिने
न व्याधि शोक दारिद्र्यं सूर्यलोकं स गच्छति
इति श्री शिवप्रोक्तं श्री सूर्याष्टकं सम्पूर्णं
Suryashtakam Lyrics in English
SURYASHTAKAM
ādidēva namastubhyaṃ prasīda mabhāskara
divākara namastubhyaṃ prabhākara namōstutē
saptāśva radha mārūḍhaṃ prachaṇḍaṃ kaśyapātmajaṃ
śvēta padmadharaṃ dēvaṃ taṃ sūryaṃ praṇamāmyahaṃ
lōhitaṃ radhamārūḍhaṃ sarva lōka pitāmahaṃ
mahā pāpa haraṃ dēvaṃ taṃ sūryaṃ praṇamāmyahaṃ
traiguṇyaṃ cha mahāśūraṃ brahma viṣṇu mahēśvaraṃ
mahā pāpa haraṃ dēvaṃ taṃ sūryaṃ praṇamāmyahaṃ
bṛṃhitaṃ tējasāṃ puñjaṃ [tējapūjyaṃ cha] vāyu mākāśa mēva cha
prabhuṃ cha sarvalōkānāṃ taṃ sūryaṃ praṇamāmyahaṃ
bandhūka puṣpasaṅkāśaṃ hāra kuṇḍala bhūṣitaṃ
ēka chakradharaṃ dēvaṃ taṃ sūryaṃ praṇamāmyahaṃ
viśvēśaṃ viśva kartāraṃ mahātējaḥ pradīpanaṃ
mahā pāpa haraṃ dēvaṃ taṃ sūryaṃ praṇamāmyahaṃ
taṃ sūryaṃ jagatāṃ nādhaṃ jnāna vijnāna mōkṣadaṃ
mahā pāpa haraṃ dēvaṃ taṃ sūryaṃ praṇamāmyahaṃ
sūryāṣṭakaṃ paṭhēnnityaṃ grahapīḍā praṇāśanaṃ
aputrō labhatē putraṃ daridrō dhanavān bhavēt
āmiṣaṃ madhupānaṃ cha yaḥ karōti ravērdhinē
sapta janma bhavēdrōgī janma karma daridratā
strī taila madhu māṃsāni hastyajēttu ravērdhinē
na vyādhi śōka dāridryaṃ sūryalōkaṃ sa gachChati
iti śrī śivaprōktaṃ śrī sūryāṣṭakaṃ sampūrṇaṃ
सूर्याष्टकम् पाठ के फायदे/लाभ :
- आत्म-शांति: सूर्याष्टकम् पाठ करने से चित्त शांत होता है और आत्मा की अंतर्दृष्टि में वृद्धि होती है।
- शरीर के स्वास्थ्य: इस पाठ से मानसिक और शारीरिक तंत्र की संगति होती है जो शरीर के स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है।
- शक्ति का विकास: सूर्याष्टकम् पाठ से आध्यात्मिक शक्तियों की विकास होती है, जिससे व्यक्ति अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रेरित होता है।
- आनंद और शांति: इस पाठ से मनोबल बढ़ता है और आध्यात्मिक आनंद और चित्त शांति प्राप्त होती है।
सूर्याष्टकम् पाठ कब और किस दिन पढ़ना चाहिए:
सूर्याष्टकम् का पाठ दिन के प्रारंभ में किया जाता है, जब सूर्य उदय के समय पृथ्वी पर आता है। यह अधिकांश विशेष दिनों पर किया जा सकता है, लेकिन ध्यान देने योग्य है कि आप इसे सयंकालीन और सूर्योदय के समय पढ़ने का प्रयास करें। सूर्य के उदय के समय पाठ करने से आध्यात्मिकता और ऊर्जा में वृद्धि होती है और दिन की शुरुआत पॉजिटिव और प्राकृतिक तरीके से होती है।
सूर्याष्टकम् पाठ करने से हम सूर्यदेव की शक्तियों को स्वीकार करते हैं और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में कदम बढ़ाते हैं। यह आपके आत्मा की शांति और सकारात्मकता को बढ़ावा देता है और दिन को प्राकृतिक और आध्यात्मिक रूप में आरंभ करता है।