हिन्दू पर्वों की शोभा और पारंपरिक महत्व के बीच, एक और महत्वपूर्ण त्योहार है – “कजरी तीज (Kajari Teej)”। यह त्योहार विशेष रूप महिलाओं में प्रसिद्द हैं विवाहित महिलाये अपने पति की लम्बी आयु और अविवाहित कन्याये मनचाहे वर की कामना के साथ इस व्रत को रखती है ये त्यौहार नारी शक्ति और समृद्धि की प्रतीक माना जाता है, और यह भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण हिस्से में से एक है।
हमारे देश में मुख्यतः 4 तरह की तीज मनाई जाती है-
- अखा तीज (Akha Teej)
- हरियाली तीज (Hariyali Teej)
- कजली तीज/ कजरी तीज/ बड़ी तीज (Kajri Teej/ Kajali Teej/ Badi Teej)
- हरतालिका तीज (Hartalika Teej)
कजरी तीज (Kajri Teej), जिसे ‘कजलिया तीज’ और सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण हिन्दू धार्मिक त्योहार है | जो श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की तीसरी तिथि को मनाया जाता है।
यह त्योहार विशेष रूप से उत्तर भारत में महिलाओं के बीच बहुत महत्वपूर्ण है और यह महादेव और भगवती पर्वती की भक्ति और सुख-समृद्धि की कामना का प्रतीक माना जाता है।
Kajari Teej 2023 Date | कजरी तीज 2023 कब है ?
इस वर्ष कजरी तीज 2 सितम्बर शनिवार को मनाई जाएगी। इस दिन महिलायें शिव-शक्ति की पूजा के साथ निमाड़ी माता की भी आराधना और व्रत पूजा करती हैं। उत्तर भारतीय राज्यों में , विशेषकर मध्यप्रदेश , राजस्थान ,उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में महिलायें यह त्यौहार बोहोत धूम धाम से मानती हैं।
कजरी तीज का मुहूर्त व तिथि ?
हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि 1 सितम्बर शुक्रवार , रात 11:50 को शुरू है।
और अगले दिन 2 सितम्बर शनिवार को रात 08:49 मिनट पर समाप्त है।
सुबह 07:57 – सुबह 09:31
रात 09:45 – रात 11:12
तिथि और पूजा कार्यक्रम:
कजरी तीज श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की तीसरी तिथि को मनाई जाती है, जो रक्षा बंधन के ३ दिन बाद आती है। इस दिन महिलाएं सुबह से ही उठकर स्नान करती हैं और व्रत की शुरुआत करती हैं। व्रत के दौरान महिलाएं पानी नहीं पीतीं और व्रत की कथा का पाठ करती हैं। उन्होंने अपनी सारी भक्ति और व्रत की योग्यता से परंपरागत तरीके से भगवती पर्वती को प्राप्त किया था।
इस दिन चाँद की पूजा भी की जाती है , अर्थात चन्द्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। और साथ ही गेंहू का भी दान किया जाता है।
Kajari Teej Vrat Vidhi | कजरी तीज पूजा विधि | कजरी तीज में क्या करें ?
- प्रातःकाल महिलाएं उठकर स्नान करें और प्राचीन मंदिर या पूजा स्थल में व्रत की शुरुआत करें।
- महादेव और भगवती पर्वती की मूर्ति के सामने विधिवत पूजा करें, दीपक जलाएं और फूल चढ़ाएं।
- पूजा के स्थान पे छोटा सा तालाब बनाकर नीमड़ी की पूजा करें उसके बाद दीपक के उजाले में नींबू, ककड़ी, नीम की डाली, नाक की नथ, साड़ी का पल्ला आदि देखें. इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें।
- कजरी तीज: चंद्रमा को अर्घ: कजरी तीज पर महिलाएं अपनी पूजा-व्रत के बाद चंद्रोदय (चंद्रमा के उदय) को अर्घ (अर्पण) देती हैं। कजरी तीज पर गेहूं, चने , जौ और चावल के सत्तू में घी और मेवा मिलाकर तरह-तरह के पकवान बनाये जाते हैं. चंद्रोदय के बाद भोजन करके व्रत तोड़ते हैं।
- व्रत की कथा का पाठ करें और भगवती पर्वती की कृपा के लिए प्रार्थना करें।
- व्रत की पूजा के बाद, आप व्रती भोजन कर सकती हैं, जिसमें साबूदाना, चावल, कद्दू की सब्जी आदि शामिल हो सकते हैं।
विशेषतौर पर गाय की पूजा होती है| इस दिन गौ माता की विशेष पूजा की जाती है, उन्हें घी और गूदवाली रोटी का भोग चढ़ाकर उनका सम्मान किया जाता है। गौ माता को इस खास मौके पर समर्पित किया जाने वाला भोजन बड़े भक्ति और श्रद्धा के साथ बनाया जाता है।
Significance of Kajari Teej | कजरी तीज महत्व और व्रत रखने के फायदे :
कजरी तीज का महत्वपूर्ण संदेश है कि महिलाएं महादेव और भगवती पर्वती की भक्ति और कठिनाईयों का सामना करते हुए भी परिश्रम से व्रत और पूजा करती हैं, जिससे उन्हें शक्ति और समृद्धि मिलती है।
कजरी तीज व्रत (Kajri Teej Vrat) एक महिला की समर्पण और शक्ति की कहानी है, यह व्रत सबसे पहले माता पारवती ने रखा था। इस व्रत को रखने से सुख समृद्धि बानी रहती है। अगर कवारी कन्याये यह व्रत रखती हैं तो उन्हें मन चाहा वर प्राप्त होता है। जिसमें वह भगवती पर्वती की अत्यंत प्रेम और भक्ति का प्रतीक दिखाती हैं। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपने पति की दीर्घायु , संतान की उन्नति , और साथ ही परिवार और समाज में सुख-समृद्धि की प्राप्ति की प्रार्थना करती हैं। कजरी व्रत को रखने से वैवाहिक जीवन के कलेश दूर होते हैं।
Kajari Teej History | कजरी तीज नाम क्यों पड़ा?
कजली तीज के नाम के पीछे दो रोमांचक कथाएँ हैं, जो हमें इस त्योहार के महत्वपूर्ण पक्षों को समझने में मदद करती हैं।
कथा 1: कजली गीतों का जगह नाम
एक वक्त की बात है, मध्य भारत में कजली नामक एक वन था, जिसके राजा दादुराई थे। वहाँ के लोग अपने स्थान को यादगार बनाने के लिए वन के नाम पर गाने गाते थे। यह गाने बगीचों और गांवों में फैले और उस जगह को प्रसिद्ध कर दिया। बाद में, राजा की मृत्यु हो गई और उनकी रानी नागमती सती हो गई। इससे लोग दुखी हो गए और इसके बाद से उन्होंने इस तीज के गाने पति-पत्नी के प्यार के संबंध को समझाने के रूप में गाने गाने लगे।
कथा 2: पार्वती की तपस्या और शिव की विशेष प्रसन्नता
एक और कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव से शादी करने की इच्छा की थी, लेकिन शिव ने उनसे तपस्या करने की शर्त रखी। उन्होंने पार्वती से 108 साल तक तपस्या करने की मांग की और उनकी आत्ममुग्धता की परीक्षा ली। पार्वती ने तप करते हुए अपनी भक्ति को सिद्ध किया और शिव को प्रसन्न किया। शिव ने अपनी पत्नी के रूप में उन्हें स्वीकार किया, और उनके प्यार की प्रतीक रूप में कजरी तीज (Kajri Teej) को मनाने का आदर किया।
How Kajari Teej is Celebrated | कहाँ कैसे मनाते है कजरी तीज ?
इन कथाओं के माध्यम से, कजली तीज का महत्व (Kajri Teej Significance) और इसके पीछे की गहराईयों को समझने में मदद होती है। यह त्योहार महिलाओं की शक्ति, प्यार और सौभाग्य का प्रतीक है, जिसकी महत्वपूर्ण कथाएँ हमें यह याद दिलाती हैं।
कजरी तीज का उत्सव भारत के विभिन्न प्रांतों में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। इस त्योहार का महत्व उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, और राजस्थान जैसे प्रदेशों में विशेष रूप से होता है।
उत्तर प्रदेश और बिहार में, लोग नाव पर चढ़कर कजरी गीत गाते हैं और वाराणसी और मिर्जापुर जैसे स्थानों में इसे बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। वे तीज के गानों को वर्षागीत के साथ गाते हैं, जिससे उत्सव का आदान-प्रदान और भी ज्यादा रंगीन बन जाता है।
राजस्थान के बूंदी शहर में कजरी तीज का खास महत्व होता है, और इस दिन यहाँ बड़ा हंगामा होता है। भादों के तीसरे दिन, लोग इस त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं। पारंपरिक नृत्य और संगीत के साथ ही ऊंट और हाथी की सवारी भी निकलती है। इस दिन बूंदी में लोग अलग-अलग जगहों से आकर इस उत्सव का आनंद लेते हैं।
Kajari Teej Vrat Katha | कजरी तीज व्रत कथा
कजरी तीज के उपलक्ष्य में अनेक प्राचीन कथाएं प्रसिद्ध हैं, जिनमें से कुछ हम आपको यंहा बता रहे हैं-
कथा 1: सात बेटों की कहानी
एक साहूकार के सात बेटे थे। सतुदी तीज के दिन उनकी बड़ी बहू नीम के पेड़ की पूजा कर रही थीं, तभी उसका पति अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गया। थोड़ी देर बाद उनकी दूसरी बेटी की शादी हुई, और वह भी सतुदी तीज के दिन नीम के पेड़ की पूजा करती हुई अपने पति को खो देती है। इसी तरीके से उनकी बच्चियाँ एक-एक करके चली जाती हैं। आखिरकार, सातवीं बेटी की शादी होती है और सतुदी तीज के दिन उसकी पत्नी नीम के पेड़ की जगह अपनी टहनी तोड़ कर पूजा करने का निर्णय लेती है। ऐसा करते ही सभी सात बेटे जीवित हो आते हैं, लेकिन उनकी पत्नी को यह बात पता नहीं होती। जब उन्हें यह बताया जाता है, तो वे खुशी से झूमती हैं क्योंकि उन्होंने अपनी विश्वासशक्ति के बल पर अपने पति को वापस जीवित कर दिया। इसके बाद, लोग नीम के पेड़ की जगह नहीं बल्कि टहनी की पूजा करने का आदर करने लगते हैं।
कथा 2: सत्तू की कहानी
एक किसान के चार बेटे और बहुएं थे। उनमें से तीन बहुएं बड़े संपन्न परिवार से थीं, लेकिन सबसे छोटी बहु गरीब थी और उसके मायके में कोई नहीं था। तीज के दिन उनकी तीनों बड़ी बहुएं सत्तू लाती हैं, लेकिन छोटी बहु के पास कुछ नहीं होता। यह देखकर वह उदास हो जाती है और अपने पति के पास जाती है। उसके पति उससे उसकी दुःखभरी कहानी सुनते हैं और उसे प्रेरित करते हैं कि वह नौकरी ढूंढे और सत्तू लाए। छोटी बहु उसी दिन एक किराने की दुकान में सत्तू लाने जाती है, लेकिन वह चोरी करने की इच्छा से उस दुकान में चली जाती है। वहां उसे बिस्तर में सोते हुए दिखकर एक अद्भुत परिवर्तन आता है और वह पति के उपदेश का पालन करने का निर्णय लेती है। उसके पति के कहने पर वह नौकरी करने के लिए जाती है और सत्तू लाकर आती है, जिससे उनकी सभी सात बेटियां सुख-शांति से जीवन व्यतीत करती हैं।
यह कथाएं दिखाती हैं कि कजरी तीज का महत्व केवल व्रत का पालन करने से ही नहीं होता, बल्कि उसके पीछे छिपी मानवीय भावनाओं और सामाजिक संबंधों के प्रति समर्पण का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है।