अजा एकादशी (Aja Ekadashi), हिन्दू पंचांग के अनुसार आने वाले सम्पूर्ण एकादशी व्रतों में से एक है,सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। वैष्णव समाज के लिए एकादशी की तिथि किसी उत्सव से कम नहीं होता है। इस दिन साधक भगवान विष्णु के निमित्त व्रत उपवास भी रखते हैं।
धार्मिक मान्यता है कि एकादशी तिथि पर व्रत उपवास रखने से आय, आयु, सुख, और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही, सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्ट से मुक्ति मिलती है। अगर आप भगवान विष्णु की कृपा दृष्टि पाना चाहते हैं, तो अजा एकादशी (Aja Ekadashi) के दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें।
इस पावन दिन को भगवान विष्णु के आदर्श जीवन की ओर एक कदम आगे बढ़ने का मौका माना जाता है। इस अवसर पर भक्त भगवान की आराधना करते हैं, जिससे उनका मानसिक और आध्यात्मिक विकास होता है। आप भी अजा एकादशी (Aja Ekadashi) के इस अद्वितीय महत्व को मानकर, इसे ध्यान से मनाएं और अपने जीवन को धार्मिकता और सद्गुणों की ओर अग्रसर करें।
अजा एकादशी 2023 में कब है ? | Aja Ekadashi Date And Time
एकादशी व्रत हिंदू धर्म में काफी महत्व रखता है। मान्यताओं के चलते यह प्रमाणित होता है कि एकादशी व्रत भगवान विष्णु को अतिशय प्रिय होते हैं। जो भी श्रद्धालु एकादशी का व्रत धारण करते हैं, वह भगवान श्री विष्णु की विशेष कृपा के भागीदार होते हैं। अजा एकादशी व्रत (Aja Ekadashi Vrat) जोकि भाद्रपद मास में धारण किया जाता है। इस दिन श्रीहरि भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना आदि की जाती है।
वर्ष 2023 में अजा एकादशी व्रत (Aja Ekadashi Vrat) 10 सितंबर 2023 रविवार के दिन रखा जाएगा। एकादशी समस्त पापों का नाश करने वाली तथा अश्वमेध यज्ञ का फल देने वाली है। एकादशी के दिन व्रत-उपवास रखकर और रात्रि जागरण करके श्रीहरि विष्णुजी का पूजन-अर्चन तथा ध्यान किया जाता है।
अजा एकादशी व्रत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाएगा इस व्रत को धारण करने वाले जातक सभी कष्टों से निवारण पाते हैं। तथा भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
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अजा एकादशी व्रत शुभ मुहूर्त 2023 | Aja Ekadashi Vrat Shubh Muhurat
- हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अजा एकादशी मनाई जाती है। इस प्रकार, साल 2023 में रविवार 10 सितंबर को अजा एकादशी है।
- एकादशी तिथि 09 सितंबर को रात 09 बजकर 17 मिनट पर शुरू होकर अगले दिन यानी 10 सितंबर को रात 09 बजकर 28 मिनट पर समाप्त होगी।
- सनातन धर्म में उदया तिथि मान है।
- अतः 10 सितंबर को अजा एकादशी का व्रत रखा जाएगा। साधक 10 सितंबर को सुबह 07 बजकर 37 मिनट से लेकर प्रातः काल 10 बजकर 44 मिनट तक जगत के पालनहार की पूजा-उपासना कर सकते हैं।
अजा एकादशी पारण समय
11 सितंबर को प्रातः काल 06:04 मिनट से लेकर 08:33 मिनट तक पारण कर सकते हैं।
अजा एकादशी व्रत 2023: उद्देश्य और महत्व | Significance of Aja Ekadashi Vrat
अजा एकादशी व्रत 2023 (Aja Ekadashi Vrat 2023 ) बहुत उद्देश्य हेतु रखा जाता है। इस व्रत का पालन करने से सुख, शांति, समृद्धि और सभी कष्टों से निवारण मिलता है। सभी एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होते हैं, और जो भी जातक एकादशी व्रत धारण करते हैं, उन्हें कभी भी शारीरिक, मानसिक, आर्थिक या अन्य किसी प्रकार के कष्ट नहीं सताते।
यह व्रत महिलाओं द्वारा धारण किया जाता है और इसका महत्व है कि इस व्रत को धारण करने पर पुत्र की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही, पुत्र को हो रही बीमारी और कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसलिए इस व्रत को धारण किया जाता है। किसी भी विवाहिता महिला को जिसे पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो रही है, उन्हें अजा एकादशी (Aja Ekadashi) व्रत धारण करना चाहिए। इस व्रत को धारण करने पर पुत्र की प्राप्ति के साथ-साथ पुत्र को हो रही सभी व्याधियां दूर हो जाती हैं। इन्हीं कई मान्यताओं के चलते अजा एकादशी व्रत (Aja Ekadashi Vrat) धारण किया जाता है।
अजा एकादशी पूजा विधि | Aja Ekadashi Vrat Puja Vidhi
- अजा एकादशी तिथि पर ब्रह्म बेला में उठकर घर की साफ-सफाई करें।
- इसके बाद दैनिक कार्यों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें।
- अब आचमन कर अपने आप को शुद्ध करें।
- भगवान विष्णु को पीला रंग अति प्रिय है, इसलिए पीले रंग का वस्त्र धारण करें।
- भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें।
- तदोउपरांत, भगवान विष्णु की पूजा विधि विधान से करें।
- पूजा गृह में एक चौकी पर लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- अब षोडशोपचार कर पीले रंग के फल, फूल, धूप, दीप आदि चीजों से भगवान विष्णु की पूजा करें।
- इस समय विष्णु चालीसा का पाठ करें। साथ ही विष्णु स्तोत्र का पाठ और मंत्र का जाप करें। पूजा करते समय विष्णु सहस्त्रनाम मंत्र (Vishnu Sahasranamam Mantra) का जप करे।
- पूजा के अंत में आरती अर्चना कर सुख, समृद्धि और वंश वृद्धि की कामना करें।
- दिनभर उपवास रखें।
- संध्याकाल में आरती कर फलाहार करें।
- रात्रि में जागरण कर कीर्तन भजन करें।
- अगले दिन पूजा-पाठ कर व्रत खोलें।
अजा एकादशी व्रत कथा | Aja Ekadashi Vrat Katha
पौराणिक काल में, एक अत्यन्त वीर, प्रतापी और सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र नामक चक्रवर्ती शासन करते थे। एक दिन भगवान की इच्छा के अनुसार, वे अपने राज्य को एक ऋषि को दान कर दिया और इसके बाद अपनी पत्नी और पुत्र को भी बेचना पड़ा। वे खुद चाण्डाल के दास बन गए और चाण्डाल के साथ काम करने लगे। राजा ने चाण्डाल के यहाँ कफन लेने का काम किया, लेकिन उन्होंने इस कठिन समय में भी सत्य के मार्ग पर चलने से कभी इनकार नहीं किया।
कई वर्षों तक ऐसे ही जीने के बाद, राजा हरिश्चंद्र ने अपने नीच कर्म से मुक्ति पाने का उपाय खोजा। उन्होंने सोचा, “मुझे क्या करना चाहिए? कैसे इस नीच कर्म से मुक्त हो सकता हूँ?” एक दिन, महर्षि गौतम ऋषि उनके पास पहुंचे और वह ऋषि को प्रणाम किया और अपनी दुख-भरी कहानी सुनाई।
राजा हरिश्चंद्र की दुख-भरी कहानी सुनकर महर्षि गौतम भी बहुत दुखी हुए और उन्होंने राजा से कहा, “हे राजन! भादों के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है। तुम उस एकादशी का व्रत विधानपूर्वक करो और रात्रि को जागरण करो। इससे तुम्हारे सभी पापों का नाश होगा।” महर्षि गौतम इतना कहकर चले गए। अजा नाम की एकादशी के दिन, राजा हरिश्चंद्र ने महर्षि के सुझाए तरीके से व्रत किया और रात्रि को जागरण किया।
इस व्रत के प्रभाव से, राजा के सभी पापों का नाश हो गया। स्वर्ग में नागाड़े बजने लगे और पुष्पों की वर्षा होने लगी। उन्होंने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, महेश और देवेन्द्र आदि देवताओं को देखा, अपने मृतक पुत्र को जीवित और अपनी पत्नी को राजसी वस्त्रों और आभूषणों से सुखद देखा। इस व्रत के प्रभाव से, राजा को फिर से अपने राज्य की प्राप्ति हुई।
अजा एकादशी व्रत कथा 2023 – कुछ और तथ्य:
राजा हरिश्चंद्र का परीक्षण: राजा हरिश्चंद्र ने चाण्डाल के वेश में काम करते हुए श्मशान भूमि पर मृत्यु के मुर्दों के वस्त्र धारण किए। इससे वे अपनी सत्यता का परीक्षण देने लगे।
गौतम ऋषि का संदेश: गौतम ऋषि ने राजा हरिश्चंद्र को उपाय बताया कि अगले माह भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी आने वाली है, जिसे व्रत और जागरण के साथ मनाकर वे अपने सभी कष्टों का नाश कर सकते हैं।
पुत्र की मृत्यु: इसी समय, राजा हरिश्चंद्र के पुत्र की मृत्यु हो गई, और उसका दाह संस्कार श्मशान घाट पर होने के लिए ले जाया गया।
सत्यता की महत्वपूर्ण परीक्षा: इस कथा में राजा हरिश्चंद्र की सत्यता की महत्वपूर्ण परीक्षा हो रही थी, और उन्हें गौतम ऋषि के संदेश के माध्यम से अजा एकादशी के व्रत का पालन करने की सलाह दी गई थी।
रोहिताश का दाह संस्कार: राजा हरिश्चंद्र ने अपने पुत्र रोहिताश की चिता सजाई, लेकिन उन्होंने इसका दाह संस्कार नहीं किया था क्योंकि वे चाण्डाल से कुछ ना कुछ देने के वादे में थे। इस परिस्थिति में ग्रामीणों ने राजा को सहायता करने का वादा किया और राजा ने दाह संस्कार किया।
इस पूरी कथा के माध्यम से, हमें ज्ञात होता है कि अजा एकादशी एक महत्वपूर्ण हिन्दू व्रत है जो सत्यता, धर्म, और निष्कल्प भक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके माध्यम से राजा हरिश्चंद्र ने अपने कर्मों के परिणाम का सामना किया और अपने पापों को नष्ट किया।
समापन:
अजा एकादशी व्रत (Aja Ekadashi Vrat) भगवान विष्णु के प्रति भक्ति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए एक अद्वितीय अवसर प्रदान करता है। यह व्रत भक्तों को अपने आत्मा के उत्थान की दिशा में मार्गदर्शन करता है और सफलता के पथ पर अग्रसर करता है।