भारतीय संस्कृति में विविधता और धार्मिकता का संगम अनगिनत त्योहारों के माध्यम से होता है, जिनमें से एक है “बहुला चतुर्थी (Bahula Chaturthi)”. यह हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो प्रायः पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है।
बहुला चौथ (Bahula Chauth) का व्रत भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य माताओं की पुत्रों की रक्षा करना होता है। इस दिन गेहूं और चावल से बनी वस्तुएं त्याग दी जाती हैं। गाय और सिंह की मिट्टी से बनी प्रतिमा की पूजा का विशेष महत्व होता है, और इसे ‘गौ पूजन व्रत’ भी कहा जाता है।
इस दिन गौ माता की उपासना विशेष रूप से की जाती है और गौ उत्पादों का सेवन निषिद्ध माना जाता है। यह परंपरागत रूप से माना जाता है कि गाय के दूध का उपयोग केवल उसके बच्चों को ही करने का अधिकार होता है।
बहुला चौथ के व्रत (Bahula Chauth Vrat) का पालन करने से निषंकित स्त्रियों को संतान की प्राप्ति होती है। यह एक महत्वपूर्ण परंपरागत हिन्दू त्योहार है जो मातृत्व की महत्वपूर्ण भावना को प्रकट करता है।
बहुला चतुर्थी 2023 में कब है? | Bahula Chauth 2023 Date & Tithi
बहुला चौथ (Bahula Chaturthi), जिसे बोल चौथ भी कहते हैं, सावन माह के कृष्ण पक्ष के चौथे दिन मनाया जाता है, और यह नागपंचमी से एक दिन पहले आता है।
इस साल, बहुला चतुर्थी 3 सितंबर 2023 को मनाई जाएगी। इसी दिन नागपंचमी का महत्व और भैया पंचमी का पर्व भी मनाया जाता है। व्रत की कथा और पूजा विधि के बारे में और अधिक जानकारी के लिए आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
महत्वपूर्ण जानकारी
बहुला चतुर्थी व्रत 2023
रविवार, 03 सितंबर 2023
चतुर्थी तिथि प्रारंभ : 02 सितंबर 2023 रात 08:50 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त: 03 सितंबर 2023 को शाम 06:25 बजे
बहुला चौथ कैसे मनाये | Bahula Chauth Celebration
गुजरात में बहुला चौथ (Bahula Chauth) के दिन व्रत रखा जाता है, और इस दिन किसानों के परिवार के हर सदस्य इस व्रत का पालन करते हैं। उन्होंने पशुओं की सुरक्षा और रक्षा के लिए इसे एक महत्वपूर्ण तरीके से मनाया है।
मध्यप्रदेश में बहुला चौथ (Bahula Chauth) को थोड़े अलग तरीके से मनाया जाता है। इस दिन, घर की महिलाएं ही व्रत रखती हैं, और वे संतान प्राप्ति और संकट से निदान के लिए प्रार्थना करती हैं। इसके साथ ही, उन्होंने अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए भी इस व्रत को रखने का निर्णय लिया है, साथ ही परिवार की समृद्धि की कामना भी की जाती है।
किसान समुदाय के लोग इस दिन जल्दी उठकर अपने पशुओं की देखभाल करते हैं और उनके रहने के स्थान को साफ-सफाई करते हैं। चावल की खिचड़ी बनाकर पशुओं को खिलाई जाती है, और उनकी पूजा की जाती है। इस दिन पशुओं के किसी भी प्रकार के काम को नहीं किया जाता है, उन्हें विश्राम दिया जाता है।
बहुला चतुर्थी: श्रीकृष्ण और गणेश की पूजा का महत्व
बहुला चतुर्थी (Bahula Chaturthi), जिसे बहुला चौथ के नाम से भी जाना जाता है, भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है। इस तिथि को गणेश जी के पूजन के साथ-साथ श्रीकृष्ण और गायों के पूजन के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन को विशेष मान्यता के साथ संतान की प्राप्ति के लिए व्रत रखने का आदर्श माना जाता है।
बहुला चौथ के दिन संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) के साथ-साथ व्रत रखने का पर्वभाव भी होता है। इस दिन कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि में व्रत आरंभ किया जाता है, जिससे कि भगवान गणेश और श्रीकृष्ण की पूजा और अर्चना से भक्तों की आशीर्वादित मनोकामनाएं पूर्ण हो सके।
इस महत्वपूर्ण तिथि पर ज्योतिष शास्त्र के अनुसार श्रीकृष्ण की विधिपूर्वक पूजा और व्रत रखने से भक्तों को अनेक गुणा पुण्य की प्राप्ति होती है। यह दिन श्रीकृष्ण और गणेश जी की पूजा के साथ-साथ गौ माता की विशेष पूजा का भी महत्वपूर्ण होता है।
बहुला चतुर्थी का महत्व | Significance of Bahula Chaturthi
बहुला चतुर्थी (Bahula Chaturthi) के बारे में कहा जाता है कि यह व्रत सत्य और धर्म की विजय का प्रतीक होता है। यह व्रत संतान के सुख और समृद्धि की प्राप्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। बहुला चतुर्थी के दिन गाय की पूजा करना भी शुभ फलदायी और धन वर्धक माना जाता है। इस दिन गाय के पालक अपनी गाय को नहीं दूधते हैं, बल्कि उन्हें उनके बछड़े के लिए दूध छोड़ देते हैं। इस विशेष दिन पर भगवान गणेश जी की पूजा के साथ ही, ‘बहुला’ नाम की धर्म परायण गाय की भी पूजा की जाती है।
बहुला पूजा की विधि | Bahula Chauth Vrat Vidhi
- बहुला चौथ पूजा का व्रत पूरे दिन तक रखा जाता है, जिसे शाम को पूजा के बाद खोला जाता है।
- इस दिन मिट्टी से गाय और बछड़े की प्रतिमाएँ बनाई जाती हैं, कुछ लोग सोने और चांदी की प्रतिमाएँ भी बनवाकर उनकी पूजा करते हैं।
- शाम को सूर्यास्त के बाद इन गाय और बछड़े की पूजा की जाती है, इसके साथ ही भगवान गणेश और कृष्ण की पूजा भी की जाती है।
- कुछ लोग ज्वार और बाजरा से बनी वस्तुएं भोग में चढ़ाते हैं और बाद में उन्हें ही ग्रहण करते हैं।
- पूजा के बाद बहुला चौथ की कथा को शांति से सुनना चाहिए।
- गुजरात में इस दिन खाना खुले आसमान के नीचे तैयार किया जाता है, और सभी एक साथ बैठकर उसे खाते हैं।
- मध्यप्रदेश में इस दिन उड़द दाल से बने बड़ों का सेवन किया जाता है, और वह उड़द दाल से बनी वस्तुएं भी औरतें ग्रहण करती हैं।
- इस दिन दूध और दूध से बनी चीजें जैसे चाय, कॉफी, दही, मिठाइयां खाना मान्य होता है।
- यह मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत का पालन करता है, उसे संकट से मुक्ति मिलती है, साथ ही संतान की प्राप्ति भी होती है। इस व्रत से धन और ऐश्वर्य मिलता है।
- पूजा अर्चना के बाद, मिट्टी से बनी गाय और बछड़े की प्रतिमाएँ किसी नदी या तालाब में सिर दिया जाता है।
बहुला चौथ की कथा | Bahula Chauth Vrat Katha
विष्णु जी के अवतरण में कृष्ण रूप में जब वे धरती पर आए थे, तो उनकी बाल लीलाएं सभी देवी-देवताओं को मोहित करती थी। उनकी रास लीलाएं गोपियों के साथ या माखन चोरी करने का आदान-प्रदान सबको बहुत अच्छा लगता था। कृष्ण जी जिनके बिलकुल समान अवतार होते हैं, कामधेनु जाति की गाय के रूप में नन्द की गोशाला में प्रवेश करते हैं। उन्हें गाय की देखभाल करने का काम बहुत पसंद आता है, और उन्होंने उसके साथ समय बिताना आरंभ किया। उस गाय के एक बछड़े की भी देखभाल होती थी, और वह बच्चा उसे बहुत याद आता था।
एक दिन बहुला गाय अपने बछड़े के साथ जंगल जाती है, और वह बछड़ा बहुत दूर चला जाता है। उसकी तलाश में बहुला आगे बढ़ती है और एक शेर के पास पहुंचती है। शेर उसे देखकर खुश हो जाता है और उसे अपने शिकार के रूप में देखता है। बहुला डरकर उसकी ओर देखती है और उसे बताती है कि वह उसे अभी नहीं खा सकता, क्योंकि उसके बच्चे को भूख लगी है और उसे दूध पिलाने की आवश्यकता है। बहुला शेर से विनती करती है कि वह उसे जाने दे और जब बच्चा ठीक हो जाएगा, तो उसे खा सकता है। शेर इस पर हँसते हुए उसकी बात मान लेता है और उसे जाने देता है।
बहुला वापस गोशाला जाती है और अपने बच्चे को दूध पिलाती है, उसके साथ समय बिताती है और उसे प्यार करती है। फिर वह वापस जंगल आकर शेर के पास जाती है। शेर उसे देखकर चौंक जाता है क्योंकि उसने बहुला की साहसिकता और भरोसे को देखा है। शेर का रूप खुलकर प्रकट होता है, और वह उसे बताते हैं कि वे कृष्ण जी हैं और यह बहुला की परीक्षा थी। उन्होंने उसे बताया कि इस व्रत का महत्व और मानव जाति द्वारा इसकी पूजा की जाएगी। इस व्रत से सुख, समृद्धि, धन, ऐश्वर्य और संतान की प्राप्ति होगी।
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सावन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को बहुला चौथ का व्रत मनाया जाता है, जिसमें सभी पशुओं की सुरक्षा की प्रार्थना की जाती है, ताकि उन्हें बारिश और अन्य प्राकृतिक आपदाओं से बचाया जा सके।
बहुला चौथ की कथा इस प्रकार है, जिससे यह उत्सव मानवता के जीवन में सुख, समृद्धि और संतान की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
निष्कर्ष:
बहुला चतुर्थी एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है। इसके माध्यम से हम अपने किसान भाइयों के प्रति आभार प्रकट कर सकते हैं और धरती माता के प्रति हमारी सहानुभूति का संकेत दे सकते हैं।