Chola temple

चोल मंदिर , भारत का आध्यात्मिक स्वर्णिम स्वरूप अथवा विश्व धरोहर स्थल (Chola Temple:- The World Heritage Site)

चोल मंदिर 10वीं और 12वीं शताब्दी के बीच भारत के चोल राजवंश द्वारा निर्मित हिंदू मंदिरों का एक समूह है। उन्हें द्रविड़ वास्तुकला के कुछ बेहतरीन उदाहरण माना जाता है, और वे अपनी जटिल नक्काशी, ऊंची मीनारों और भव्य आकार के लिए प्रसिद्ध हैं।

तीन सबसे प्रसिद्ध चोल मंदिर तंजावुर में बृहदीश्वर मंदिर, गंगईकोंडा चोलपुरम में बृहदीश्वर मंदिर और दारासुरम में ऐरावतेश्वर मंदिर हैं। ये सभी मंदिर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं, और भारत में प्रमुख पर्यटक आकर्षण हैं।

भारत एक विविधतापूर्ण और रंगबिरंगी संस्कृति का देश है, जहां धार्मिकता और संस्कृति का मेल एक अद्वितीय रूप धारण करता है। भारत की प्राचीनतम और अत्यंत महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है “चोल मंदिर“, जो तमिलनाडु राज्य के सत्तावेदिकापुरम जिले में स्थित है। जो दक्षिण भारत के चोल शासन के दौरान बनाये गए थे। इस मंदिर का नाम “चोरल” संस्कृत शब्द “चोल” से लिया गया है, जो मंदिर के स्थापक राजवंश चोल वंश के नाम पर रखा गया है।

List of the Most Famous Chola Temples and their Locations

Brihadisvara Temple at Thanjavur (तंजावुर में बृहदीश्वर मंदिर)
Brihadisvara Temple at Gangaikonda Cholapuram (गंगईकोंडा चोलपुरम में बृहदीश्वर मंदिर)
Airavatesvara Temple at Darasuram (दारासुरम में ऐरावतेश्वर मंदिर)
Vijayalaya Cholisvaram (विजयालय चोलिसवरम)
Ayikudi Balasubramanya Swami Temple (अयिकुडी बालासुब्रमण्यम स्वामी मंदिर)

महान जीवित चोल मंदिर (Great Living Chola Temple, UNESCO World Heritage Center)

चोल मंदिर एक प्रमुख हिन्दू तीर्थस्थल है और तमिलनाडु की महान विशेषता है। यह विश्व धरोहर स्थल के तौर पर यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त है। इस सूची में बृहदीश्वर मन्दिर तंजावूर , बृहदीश्वर मन्दिर गंगैकोंडचोलपुरम,ऐरावतेश्वर मंदिर कुंभकोणम सम्मिलित हैं।यह 11वीं और 12वीं शताब्दी में निर्मित हुए थे।  

यह मंदिर चोल संस्कृति के महत्वपूर्ण प्रतीक के रूप में मान्यता प्राप्त है और उनके शिल्पकारी योगदान की प्रशंसा करती है। इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त होने का कारण है इसकी आधुनिकता और सुंदरता।

सभी मंदिर वास्तुकला की द्रविड़ शैली में बनाए गए हैं, जिसकी विशेषता इसके ऊंचे विमान (गर्भगृह टावर), अलंकृत मूर्तियां और विशाल मंडप (हॉल) हैं। तंजावुर में बृहदीश्वर मंदिर तीन मंदिरों में सबसे बड़ा है, और इसे द्रविड़ वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरणों में से एक माना जाता है। यह मंदिर विनाश और पुनर्जनन के हिंदू देवता शिव को समर्पित है।

 इस मंदिर का निर्माण 9वीं और 12वीं सदी के बीच हुआ था और इसे तीन खंडों में विभाजित किया गया है: मुक्कोटु चोलेश्वर मंदिर, आर्यवर्त नायाकी अम्बालम्, और पेरियप्परेड्दि नायाकी अम्बालम्। इन तीनों खंडों में स्थित मंदिर में भगवान शिव, विष्णु, ब्रह्मा और देवी दुर्गा की मूर्तियां स्थापित हैं।

1987 में यूनेस्को द्वारा बृहदीश्वर मन्दिर को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। अतः सन 2004 में  ऐरावतेश्वर मंदिर दारासुरम को इस सूरी में सम्मिलित किया गया था। साथ ही , चोल मंदिर को “महान जीवित चोल मंदिर ” नाम दिया गया है। 

चोल मंदिर के तीन सतम्भ (Three Pillars of Chola Temple):-

भारत विश्व में धार्मिकता और स्थानीय संस्कृति का एक महान भूमि है। इसी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं चोला मंदिर, जो भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित हैं। ये मंदिर वास्तुशिल्प के महानतम नमूनों में से एक हैं और इसके साथ ही इन्हे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की गरिमा भी हासिल है। ये मंदिर चोल वंश की राजसत्ता के दौरान निर्मित हुए थे और इसका निर्माण करते समय विशेष ध्यान वास्तुकला पर दिया गया था।

1.बृहदीश्वर मंदिर, तंजावुर (Brihadisvara Temple at Thanjavur)

Brihadisvara Temple at Thanjavur

बृहदीश्वर मंदिर, जिसे पेरुवुदैयार कोविल के नाम से भी जाना जाता है, भगवान शिव को समर्पित हैं। ये मंदिर राजराजा प्रथम द्वारा निर्मित किया गया था और ये द्रविड़ीय वास्तुकला का एक महान उदाहरण हैं। इसकी उच्च विमान (मंदिर की ऊँची टावर) इसे विश्व की सबसे ऊँची मंदिर टावरों में से एक बनाती हैं। मंदिर की दीवारों पर सुंदर कलात्मक नक्काशी, मूर्तियाँ और फ्रेस्को का सजावट हैं, जो विभिन्न पौराणिक और सांस्कृतिक विषयों को दर्शाती हैं।

2.ऐरावतेश्वर मंदिर, दारासुरम (Airavatesvara Temple at Darasuram)

Airavatesvara Temple at Darasuram

ऐरावतेश्वर मंदिर, जो दारासुरम में स्थित हैं, चोल वंश की एक और अद्भुत रचना हैं। इसे राजराजा द्वितीय ने निर्मित किया था और ये भगवान शिव को समर्पित हैं। इस मंदिर की विशेषता उसमें रची गई पत्थर की नक्काशी, जिसमें देवताओं, देवीदेवताओं, पौराणिक प्राणियों और दिव्य सत्ताओं की मूर्तियाँ सजाई गई हैं। मंदिर की मुख्य विमान पर गहन स्टको का काम किया गया हैं, जो चोल कलाकारों की कला की प्रशस्ति करता हैं।

3.गंगैकोंड चोलापुरम मंदिर (Brihadisvara Temple at Gangaikonda Cholapuram)

Brihadisvara Temple at Gangaikonda Cholapuram

गंगैकोंड चोलापुरम मंदिर राजेंद्र चोला प्रथम ने बनवाया था और ये भगवान शिव को समर्पित हैं। इसे उनकी विभिन्न क्षेत्रों पर विजय को स्मारिका के रूप में बनवाया गया था, जो चोल वंश की गरिमा और सत्ता को दर्शाता हैं। मंदिर की ऊँची विमान और उसकी दीवारों पर विभिन्न पत्थर की मूर्तियाँ हैं, जो चोल कारीगरों की कला की महानता को दर्शाती हैं। मंदिर का सम्पूर्ण परिसर अन्य देवताओं के समर्पित छोटे मंदिरों और एक विशाल नंदी (बैल) मूर्ति को भी स्थान देता हैं।

चोल मंदिर न केवल वास्तुशिल्प की महानता की प्रशंसा करते हैं, बल्कि इन्हें अभी भी आकर्षित करने वाले केंद्रों के रूप में भी मान्यता मिली हैं। ये मंदिर चोल वंश की संस्कृति, धार्मिकता और कला के महत्वपूर्ण प्रतीक हैं। चोल कारीगरों की जटिल शिल्पकला, विस्मयकारी नक्काशी और इन मंदिरों की महानता का आनंद लेने के लिए चोला मंदिरों का भ्रमण अद्वितीय अनुभव होता हैं।

चोल मंदिर कहाँ स्तिथ है (Chola Temple Location):-

तंजावूर मंदिर चेन्नई से लगभग 350 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में है। साथ ही,ऐरावतेश्वर मंदिर, दारासुरम और गंगैकोंड चोलापुरम मंदिर इसके उत्तर पूर्व में क्रमशः  70 किलोमीटर और लगभग  40 किलोमीटर दूर है। 

  • बृहदीश्वर मंदिर, तंजावुर: यह मंदिर तंजावुर शहर में स्थित हैं और 25 एकड़ क्षेत्र को आवृत्त करता हैं।
  • ऐरावतेश्वर मंदिर, दारासुरम: यह मंदिर दारासुरम में स्थित हैं और 4 एकड़ क्षेत्र को आवृत्त करता हैं।
  • गंगैकोंड चोलापुरम मंदिर: यह मंदिर गंगैकोंड चोलापुरम नामक स्थान पर स्थित हैं और 10 एकड़ क्षेत्र को आवृत्त करता हैं।

ये मंदिर एक दूसरे के पास स्थित हैं और इन्हें देखने के लिए यात्रियों को कम समय और पर्यटन की सुविधा मिलती हैं। चोल टेम्पल एक दूसरे के आसपास स्थित होने के कारण ये पर्यटन संबंधी गतिविधियों के लिए एक प्रमुख स्थान माने जाते हैं। इन मंदिरों की स्थिति और क्षेत्रफल ने यात्रियों को उनकी महानता का अनुभव कराने में सहायता की हैं

चोल मंदिर की विशेषता (Importance of Chola Temple)

  • चोल मंदिरों का निर्माण विनाश और पुनर्जनन के हिंदू देवता शिव की पूजा के लिए किया गया था।
  • मंदिरों का उपयोग खगोलीय अवलोकनों के लिए भी किया जाता था और उनमें से कुछ में पुस्तकालय भी थे।
  • चोल मंदिर लंबे समय तक टिके रहने के लिए बनाए गए थे और उनमें से कई आज भी खड़े हैं।
  • चोल मंदिर भारत में एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण हैं, और वे भारतीय लोगों के लिए गर्व का स्रोत भी हैं।

चोल मंदिर चोल राजवंश के कलात्मक और स्थापत्य कौशल का प्रमाण हैं। वे भारत की सांस्कृतिक विरासत का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। मंदिरों का उपयोग आज भी धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है, और वे लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी हैं।

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