धनतेरस का महत्व –
कार्तिक माह (पूर्णिमान्त) की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र-मंन्थन के समय भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है।
मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि विष्णु के अंशावतार हैं। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धन्वंतरि का अवतार लिया था।
धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं ।
धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि और मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का महत्व है।
धनतेरस पर धन्वंतरि भगवान का यह मंत्र सिर्फ 3 बार सुनने से हमेशा स्वस्थ रहेंगे, होगी हर बीमार दूर ।
इस दिन नए बर्तन, चांदी खरीदना शुभ माना जाता है।
धनतेरस पर बर्तन और चांदी खरीदने का क्या है महत्व?
धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है।
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है, इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में सन्तोष रूपी धन का वास होता है।
संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थहै, सुखी है, और वही सबसे धनवान है।
भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं। उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है।
धनतेरस पर दिए क्यों जलाएं जाते है?
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा है।
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर यम देवता के नाम का दिया जलाना चाहिए ।
धनतेरस के दिन 13 दिए जलाये जाते है । इन 13 दियो का भी अपना एक महत्व है, जाने-
पहला दीपक – सबसे पहले भगवान गणेश का जलाया जाता है। दीपक जलाते समय भगवान गणेश का ध्यान करें और उसमें एक इलायची डाल दें और उनसे प्रार्थना करें कि हे रिद्धि सिद्धि के दाता मैं पूजन की शुरुआत कर रहा हूं कृपया करके मेरे जीवन से सभी प्रकार के विघ्नों को दूर करें और हमारे जीवन में सुख और शांति का वास करें।
दूसरा दीपक – आपको माता लक्ष्मी के नाम का जलाना है और उनका आह्वाहन करना है और उनसे प्रार्थना करनी करें कि हे लक्ष्मी माता आज से मैं आपके पूजन की शुरुआत कर रहा हूं। कृपा करके आप मेरे घर में विराजे और भगवान कुबेर को भी अपने साथ लेकर आएं। इसके बाद कुबेर देव का आह्वाहन करें और कहें कि हे कुबेर देवता मेरे जीवन में जो भी धन रूपी समस्याएं आ रही हैं उसे दूर करें।
तीसरा दीपक – आपको भगवान धनवंतरी का जलाना है। दीपक को जलाने के बाद उसमें एक लौंग अवश्य डाल दें। इसके बाद भगवान धनवंतरी से प्रार्थना करें कि वह आपको और आपके पूरे परिवार को निरोगी काया दें। इस तरह धनवंतरी जी से प्रार्थना करने के बाद इनके नाम का दीपक ईशान कोण में रख दें।
चौथा दीपक – आपको यम देव के नाम का प्रजवल्लित करना है। इस दीपक को प्रज्वलित करते समय उसमें एक कौड़ी अवश्य डाल दें। यदि आपको कौड़ी न मिल सके तो आप उसमें एक रुपए का सिक्का डाल दें। इसके बाद यह दीपक दक्षिण दिशा में रखे दें।
पांचवा दीपक – चित्रगुप्त के नाम का जलाएं। धनतेरस के दिन चित्रगुप्त को प्रसन्न करना बहुत जरूरी है क्योंकि वही हमारे कर्मों का हिसाब रखते हैं। चित्रगुप्त के नाम का दीपक जलाने से घर में खुशहाली आती है।
छठा दीपक – तुलसी जी के नाम का जलाएं तुलसी का पौधा घर में रखना अतिशुभ माना जाता है। तुलसी जी के नाम का दीपक जलाने के बाद उसमें सात दानें साबूत मूंग के डाल दें और जहां आपने तुलसी का पौधा रखा हो वहां पर रख दें।
सांतवा दीपक – आपको जल देवता के नाम का रखना चाहिए। क्योंकि शास्त्रों के अनुसार जहां पर भी आप पानी रखते हैं वहां पर एक दीपक अवश्य जलाना चाहिए। पानी के स्थान पर दीपक जलाते समय उसमें इत्र या खुशबू वाले फूल अवश्य डालें और उसमें एक रुपये का सिक्का भी अवश्य डालें।
आठवां दीपक – गऊ माता के नाम का जलाना चाहिए। गऊ माता में सभी देवताओं का वास माना जाता है। इसलिए इस दिन किसी गऊशाला में जाकर एक दीपक अवश्य प्रज्वलित करें। यदि ऐसा संभव न हो सके तो आप इस दिन किसी गरीब के घर वह दीपक जला सकते हैं।
नवां दीपक – अपने घर के आंगन में जलाएं और उस दीपक को जलाते समय उसमें एक रुपए का सिक्का, सात खील के सात दाने या धान के सात दाने भी अवश्य डाल दें।
दसवां दीपक – आपको अपनी छत के लिए जलाना है। इस दीपक को जलाते समय उसमें सात पीली सरसों के दाने अवश्य डालें।
ग्यारहवां दीपक – अपने पित्तरों के नाम का जलाना चाहिए।यह दीपक आपको दक्षिण दिशा में धनतेरस से लेकर भाई दूज तक जलाना है। यह दीपक जलाते समय आपको एक रुपए का सिक्का भी इसमें डालना है।
बारहवां दीपक – गंगा माता के नाम का जलाएं। इस दीपक को जलाते समय सात दाने पीले चावल के उस दीपक में अवश्य डालें। यह दीपक जलाने से आपके सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाएंगे और आपको मोक्ष की प्राप्ति होगी।
धनतेरस के दिन तेरहवां दीपक तिजोरी के लिए जलाया जाता है। क्योंकि तिजोरी हमारे धन का स्थान होता है। इस दिन आपको एक रुपए का सिक्का डालकर दीपक प्रज्वलित करके उसे तिजोरी के ऊपर अवश्य रखें।
धनतेरस के दिन यम देवता के नाम का दिया क्यों जलाया जाता है?
इस प्रथा के पीछे एक लोककथा है। कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा।
राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े।
दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे।
जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा। परन्तु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा।
यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे, उसी समय उनमें से एक ने यम देवता से विनती की- हे यमराज! क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए।
दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यम देवता बोले, हे दूत! अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है, इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं, सो सुनो।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीपमाला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।
यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
धनतेरस पर धन की पूजा क्यों की जाती है?
धनतेरस से जुड़ी कथा है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी।
कथा के अनुसार, देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गए।
शुक्राचार्य ने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे उन्हें इंकार कर देना। वामन साक्षात भगवान विष्णु हैं जो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए हैं।
बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी। वामन भगवान द्वारा मांगी गई तीन पग भूमि, दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए। इससे कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया।
वामन भगवान शुक्रचार्य की चाल को समझ गए। भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई। शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से निकल आए।
इसके बाद बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया। तब भगवान वामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को।
तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया। बलि दान में अपना सब कुछ गंवा बैठा।
इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुना धन-संपत्ति देवताओं को मिल गई।
इस उपलक्ष्य में धनतेरस पर धन की पूजा की जाती है ।
इसलिए धनतेरस पर धन के देवता कुबेर की भी पूजा की जाती है ।
भगवान कुबेर भी देवी लक्ष्मी के भाई माने जाते हैं ।क्योंकि वह देवताओं के धन-संपत्ति के खजांची हैं और उसकी रक्षा की जिम्मेदारी उन पर है. इसके अलावा वह धन-संपत्ति का वरदान देने वाले भी हैं.
धनतेरस के दिन कुबेर देव को प्रसन्न करने के लिए सुने कुबेर देव के 108 नाम वो भी स्वयं सिद्ध गुरु की आवाज मे