भारतीय संस्कृति में धार्मिक और आध्यात्मिक उत्सव अपने विशेष महत्व रखते हैं। इन उत्सवों के माध्यम से हम अपने आदर्शों, मूल्यों, और परंपराओं के प्रति अपनी स्थायिता को दिखाते हैं। गायत्री जयंती भारतीय हिंदी कैलेंडर (Hindu Calander) में एक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है जो आदित्य शक्ति माता गायत्री की पूजा के लिए मनाया जाता है। इस लेख में, हम गायत्री जयंती के महत्वपूर्ण पहलुओं को जानेंगे।
गायत्री जयंती क्यों मनाई जाती है? | Significance of Gayatri Jayanti
गायत्री जयंती (Gayatri Jayanti) माता गायत्री के जन्मदिन की धार्मिक परंपरा का उत्सव है। इस खास मौके पर हम माता गायत्री के महत्वपूर्ण रूप, गायत्री मंत्र, उपवास का महत्व, पूजा का मुहूर्त, और आराधना की विशेषताओं को समझते हैं।
माता गायत्री का दिव्य स्वरूप:
माता गायत्री को त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की अवतारिणी माना जाता है। वेदों की माता के रूप में वे प्रसिद्ध हैं और उन्हें वेद माता के नाम से भी जाना जाता है। उनके स्वरूप में सात्विक गुणों का प्रतिष्ठान है और उन्होंने ब्रह्मांड में सद्गुणों की प्रेरणा की है।
गायत्री मंत्र का महत्व:
गायत्री मंत्र को ऋषि विश्वामित्र ने दिया था, और यह मंत्र आदित्य शक्ति की महामंत्रिता को प्रकट करता है। इसका जाप करने से व्यक्ति की आत्मा को शुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
गायत्री जयंती पूजा मुहूर्त:
गायत्री जयंती के दिन विशेष पूजा मुहूर्त का पालन किया जाता है। इस दिन सूर्योदय के पास पूजा का समय उत्तम माना जाता है, जिससे आदित्य शक्ति की कृपा प्राप्त हो सके।
आराधना की विशेषता:
गायत्री जयंती पर भक्त गायत्री मंत्र का जाप करके माता गायत्री की आराधना करते हैं। उन्हें सद्गुणों की प्राप्ति और आत्मा के प्रकाश की प्राप्ति के लिए प्रेरित करने का अवसर मिलता है।
गायत्री जयंती एक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है जो हमें माता गायत्री के प्रति आदर और श्रद्धा की अद्वितीयता को समझने का अवसर प्रदान करता है। इस उत्सव के माध्यम से हम आदित्य शक्ति की आराधना करते हैं और उनके प्रकाश से अपने जीवन को आलोकित करते हैं।
गायत्री जयंती का महत्व
गायत्री जयंती वर्ष में दो बार मनाई जाती है – एक वसंत ऋतु में और एक शरद ऋतु में। यह उत्सव सूर्यदेव की पूजा के रूप में मनाया जाता है, जिन्हें भारतीय संस्कृति में जीवन की प्राण-शक्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। गायत्री मंत्र का जाप करने से व्यक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है और उसकी आत्मा को शांति प्राप्त होती है।
गायत्री जयंती कब है?| Gayatri Jayanti Date And Timing 2023
साल 2023 में गायत्री जयंती की तारीखें दो बार हैं:
गायत्री जयंती – 31 मई 2023 (ज्येष्ठ मास की एकादशी)
श्रावण पूर्णिमा – 31 अगस्त 2023 (श्रावण मास की पूर्णिमा)
आपके लिए जो तारीख सही हो, आप उस दिन गायत्री जयंती का उत्सव मना सकते हैं।
गायत्री जयंती – 31 अगस्त 2023 बुधवार (ज्येष्ठ मास की एकादशी)
गायत्री जयंती की तिथि – ज्येष्ठ एकादशी
गायत्री जयंती का समय (Gayatri Jayanti Time 2023 )
गायत्री जयंती तिथि प्रारंभ – 30 मई 2023 को 10:58 am
गायत्री जयंती तिथि समाप्त – 31 मई 2023 को 07:05 am
कैसे प्रकट हुईं गायत्री माता? माता गायत्री की पौराणिक कथाएं
माता गायत्री का विवाह:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता गायत्री का विवाह देवराज ब्रह्मा जी से हुआ था। ब्रह्मा जी की दो पत्नियाँ थीं – गायत्री और सावित्री। गायत्री देवी का अर्थ होता है ‘वेदों की माता’ और सावित्री देवी का अर्थ होता है ‘विविध उपासना की माता’।
गायत्री देवी ब्रह्मा जी की प्रमुख पत्नी हैं और उन्हें वेद माता के रूप में पूजा जाता है। वे वेदों की प्रतिनिधि हैं और आदित्य शक्ति के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं।
सावित्री देवी की भौतिक जगत में महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने अपने पति की आयु को बचाने के लिए यमराज से आग्रह किया था और उन्होंने उनकी आत्मा को अपने पति के साथ वापस भेजने का व्रत रखा था।
इस प्रकार, माता गायत्री और माता सावित्री दोनों ही महत्वपूर्ण देवियाँ हैं जो विभिन्न रूपों में मानी जाती हैं और भक्तों की आराधना की जाती है। उनके विवाह की कथाएं भगवान की लीला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और हमें उनके उपासना के माध्यम से आदर्शों का पालन करने की प्रेरणा मिलती है।
इसे भी देखें – तुलसी माता की कथा | Tulsi Mata Ki Kahani
गायत्री मंत्र की उत्पत्ति | Gayatri Mantra
परम्पिता ब्रह्मा के द्वारा गायत्री मंत्र (Gayatri Mantra ) की उत्पत्ति की कथा विशेष मान्यताओं में प्राचीनतम रूप में प्रस्तुत है। यह कहानी वेदों के महत्वपूर्ण आदिकाव्य ‘रिग्वेद’ के अनुसार उपलब्ध है।
गायत्री मंत्र इस प्रकार है-
ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
पुरातन कथानकों के अनुसार, परमपिता ब्रह्मा को माता सरस्वती से तीन पुत्र उत्पन्न हुए – सनक, सनंदन और सनातन। ये तीनों पुत्र ब्रह्मा जी की आदिकाव्य ‘ब्रह्म सम्हिता’ के माध्यम से ध्यानयोग और ज्ञान के प्रश्नों की प्राप्ति करने के लिए गए थे। उनके द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देने में ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने अपने मन से एक और पुत्र की आवश्यकता की उम्मीद की। इसके परिणामस्वरूप, ब्रह्मा जी की मनोकामना को पूरी करने के लिए वे एक विशेष मंत्र का सिर्जन करने का संकल्प बनाए। उन्होंने सृष्टि में गहन मन्त्र ‘गायत्री’ का सिर्जन किया, जिसे वे ऋषि विश्वामित्र को प्रदान करने का निर्णय लिया।
ऋषि विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र को प्राप्त करके उसका तपस्या में जाप किया और उसके द्वारा आत्मा को प्राप्त करने की कला का अध्ययन किया। उन्होंने यह मंत्र मानवता के लिए दिया, ताकि वे जीवन के सार्थक और उद्देश्यपूर्ण मार्ग में आगे बढ़ सकें।
गायत्री मंत्र की उत्पत्ति कथा ब्रह्मा जी के द्वारा प्रकट किए गए दिव्य और आदर्श सन्देश की प्रतीक है। यह मंत्र आत्मा के उद्देश्य को पहचानने, उसके दिशा-निर्देश में आगे बढ़ने और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।
गायत्री मंत्र (Gayatri Mantra) का अर्थ व्याख्यान करते समय, हमें मंत्र के प्रत्येक शब्द की महत्वपूर्णता को समझने का प्रयास करना चाहिए।
ॐ भूर् भुवः स्वः:
इस पहले पाद में “ॐ भूर् भुवः स्वः” के शब्द आते हैं। ये तीनों शब्द व्योम में स्थित तीन लोकों की प्रतिनिधित्व करते हैं – भूः (भूलोक), भुवः (भुवर्लोक) और स्वः (स्वर्गलोक)। इन शब्दों के माध्यम से हम प्रार्थना करते हैं कि परमात्मा हमें सभी तीनों लोकों में शुद्धता, सद्गुण और सकारात्मकता की प्राप्ति करने में मदद करें।
तत् सवितुर्वरेण्यं:
“तत् सवितुर्वरेण्यं” का अर्थ होता है कि हम परमात्मा की प्रार्थना करते हैं कि वह हमें उनके श्रेष्ठ रूप में प्रेरित करें, हमें उनके दिव्य गुणों का अनुभव कराएं और हमें उनके प्रकार में बदलने में मदद करें।
भर्गो देवस्य धीमहि:
“भर्गो देवस्य धीमहि” का अर्थ है कि हम परमात्मा की प्रार्थना करते हैं कि वह हमारी बुद्धि को उनके दिव्य प्रकार से आच्छादित करें, हमें उनके ज्ञान से परिपूर्ण बनाएं और हमें अज्ञान से मुक्ति दिलाएं।
धियो यो नः प्रचोदयात्:
“धियो यो नः प्रचोदयात्” का अर्थ है कि हम परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि वे हमारी मानसिक दिशा को प्रेरित करें, हमें उनकी दिशा में चलने की सामर्थ्य प्रदान करें और हमें आत्मा के उद्देश्य की प्राप्ति में मदद करें।
इस प्रकार, गायत्री मंत्र का अर्थ होता है कि हम परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें दिव्यता, ज्ञान, आत्मशक्ति और सद्गुणों की प्राप्ति में मदद करें, ताकि हम सफलता, सुख और समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ सकें।
गायत्री मंत्र का महत्व:
गायत्री जयंती के दिन गायत्री मंत्र का जाप विशेष रूप से किया जाता है। गायत्री मंत्र एक प्राचीन वेदिक मंत्र है जिसे ऋषि विश्वामित्र द्वारा दिया गया था। इस मंत्र का जाप करने से मानव मन को शुद्धि, ज्ञान, और आदित्य शक्ति की प्राप्ति होती है।
मां गायत्री पूजा विधि (Gayatri Jayanti Pooja Vidhi)
माता गायत्री की पूजा का आदर्श विधि निम्नलिखित है:
पंचकर्म:
पूजा की शुरुआत पंचकर्म से करें, जिसमें पवित्रीकरण, आचमन, शिखा वंदन, प्राणायाम और न्यास शामिल हैं। यह पंचकर्म आपके शरीर को पवित्र और उत्तम बनाते हैं।
देवी पूजन:
मां गायत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने बैठें। मां गायत्री को सच्चे मन से याद करें और उन्हें उस चित्र या प्रतिमा में अवतरित मानें।
पूजा सामग्री:
पूजा के लिए जल, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य की तैयारी करें।
मां गायत्री पूजा क्रिया:
पूजा की शुरुआत मां गायत्री के सामने बैठकर करें।
पवित्र जल से हाथ धोकर आचमन करें।
शिखा वंदन करते समय अपने हाथों को ऊपर की ओर उठाएं और मां गायत्री का ध्यान करें।
प्राणायाम करें, जिससे आप अपने मन को शुद्ध कर सकें।
ध्यान करते समय मां की कृपा की प्राप्ति के लिए मन्त्रों का उच्चारण करें।
अंत में माता गायत्री की आरती (Gayatri Mata Aarti) करें
गायत्री मंत्र जप:
आपके अंतरात्मा से मां गायत्री का ध्यान करें और गायत्री मंत्र की तीन माला या कम से कम 15 मिनट तक मंत्र उच्चारण करें। ध्यान रहे मंत्र उच्चारण के समय आपके होठ हिलते रहें लेकिन आपकी आवाज इतनी मंद होनी चाहिए कि पास बैठे व्यक्ति को भी सुनाई न दें।
इस रूप में, माता गायत्री की पूजा विधि का पालन करके आप मां के आशीर्वाद को प्राप्त कर सकते हैं और उनके दिव्यता और शक्तियों का अनुभव कर सकते हैं।
आदित्य शक्ति की प्रतीक:
गायत्री माता को आदित्य शक्ति की प्रतीक माना जाता है, जिनका प्रतिष्ठान आकाश में होता है। वह सूर्यमण्डल की देवी हैं और उनके पास सात ब्रह्मांडिक गीताओं का ज्ञान है। वे सभी जीवों की शिक्षिका हैं और उन्हें दीप्ति, ज्ञान, और शक्ति की प्राप्ति के लिए प्रेरित करती हैं।
उत्सव की विशेषता:
गायत्री जयंती के दिन श्रद्धालु भक्तिभाव से सूर्य मंदिरों में जाते हैं और वहां गायत्री मंत्र का जाप और पूजा करते हैं। यह उत्सव आध्यात्मिक उन्नति और अध्ययन की दिशा में एक महत्वपूर्ण अवसर होता है।
समापन | Conclusion
गायत्री जयंती के दिन हम आदित्य शक्ति माता गायत्री की पूजा और उनके मंत्र के जाप के माध्यम से अपने जीवन को प्रकाशमय और उज्ज्वल बना सकते हैं। इस उत्सव के माध्यम से हम आत्मा को ऊर्जित करके नई ऊँचाइयों की ओर बढ़ने का संकेत प्राप्त करते हैं। इस गायत्री जयंती पर, हमें आदित्य शक्ति की आराधना के माध्यम से अपने जीवन को प्रकाशमय बनाने का संकल्प लेना चाहिए।