भारतीय साहित्य की एक अद्वितीय कृति, ‘रामायण’, न केवल एक महाकाव्य है, बल्कि एक अद्भुत धार्मिक ग्रंथ भी है, जो हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं की समझ देता है।
इस अनमोल ग्रंथ के अष्टक चौपाइयों (8 Chaupai) का पाठ करके हम न केवल आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि आर्थिक और आत्मिक समृद्धि की प्राप्ति का मार्ग भी प्राप्त कर सकते हैं।
अष्टक चौपाइयां रामायण (8 Ramayan Chaupai) के अद्भुत अंश हैं जो हमें भगवान श्रीराम के जीवन और उनके विचारों के प्रति आकर्षित करते हैं। इन चौपाइयों में समाहित है धार्मिकता, मानवता, नीति, और उद्देश्यपूर्ण जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांत।
रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई
चौपाई 1-
जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए।।
भुवन चारिदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषहि सुख बारी।।
अर्थ:
जब श्रीराम आपने घर में विवाह किया, तो सभी दिशाएँ उपलब्ध हो गईं और नव नव आनंद के संकेत दिखाई दिए। वह सम्पूर्ण भूभार को धारण करने वाले हैं और उनके प्रेम में भरपूर सुख मन को मिलता है।
भाव:
यह चौपाई हमें यह सिखाती है कि श्रीराम के आगमन से सभी दिशाएँ आनंदित हुईं और खुशियाँ फैलीं। हमें इससे यह सिख मिलती है कि जब हम अच्छाई और सत्य की ओर आगे बढ़ते हैं, तो समाज में सुख और शांति की भावना बढ़ जाती है।
चौपाई 2-
रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई। उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई।।
मनिगन पुर नर नारि सुजाती। सुचि अमोल सुंदर सब भाँती।।
अर्थ:
रिद्धियाँ, सिद्धियाँ, संपत्तियाँ, नदियाँ, उन्नत नगर अवध में समुद्र की तरह विस्तारित हुआ। उस नगर में उपजे हुए पुरुष-स्त्री श्रीराम के दर्शन को पाने के लिए उमड़ आए। वे सभी अत्यन्त मनोहर और सुंदर दिखते हैं।
भाव:
इस चौपाई से हमें यह सिखने को मिलता है कि जब धर्म, सत्य और भगवान की प्रेम-भावना से संवादना होती है, तो सभी सिद्धियाँ और समृद्धि स्वतः ही प्राप्त होती हैं। इससे हमें यह भी सिखने को मिलता है कि जीवन के सभी पहलुओं में भगवान की आवश्यकता होती है और उनके दर्शन से ही हमारी आत्मा को सुख मिलता है।
चौपाई 3-
कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। जनु एतनिअ बिरंचि करतूती।।
सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी।।
अर्थ:
उस अवध के नगर में किसी भी प्रकार की कटिनाइयाँ नहीं थीं और वहाँ के लोग सब खुश रहते थे। श्रीराम की अद्भुत छाया में वे सब लोग आनंदित होते थे।
भाव:
यह चौपाई हमें यह शिक्षा देती है कि धर्म और सत्य के पालन से समृद्धि, सुख और शांति प्राप्त होती है। यह हमें यह भी याद दिलाती है कि भगवान की प्रेम-भावना से ही हम अपने जीवन को पूर्णता की ओर ले जा सकते हैं।
चौपाई 4-
मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली।।
राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ। प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ।।
अर्थ:
सभी सखियाँ और सहेलियाँ आनंदित थीं और उनके मनोरथ सिद्ध हो गए जब वे श्रीराम का सुंदर रूप, गुण और सील देखती और सुनती थीं।
भाव:
इस चौपाई के माध्यम से हमें यह सिखने को मिलता है कि सत्य और धर्म के पालन से हमारे मनोरथ पूरे होते हैं और भगवान के गुण और सील का चिंतन करने से हमारा मन आनंदित होता है।
चौपाई 5-
एक समय सब सहित समाजा। राजसभाँ रघुराजु बिराजा।।
सकल सुकृत मूरति नरनाहू। राम सुजसु सुनि अतिहि उछाहू।।
अर्थ:
एक समय उन सभी सहित समाज में रघुराज श्रीराम की राजसभा ब्रह्मांड के समान दिखाई देती थी। उनके गुणों की मूर्ति वहाँ के लोगों को स्पष्ट दिखाई देती थी और वे सभी उनके चरणों में आनंदित हो उछाल उठते थे।
भाव:
इस चौपाई से हमें यह शिक्षा मिलती है कि एक समृद्ध समाज वही हो सकता है जिसमें धर्म, न्याय और सच्चाई का पालन होता है। राजा श्रीराम के गुणों का उचित सम्मान करने से हम अपने जीवन में आनंद और उत्कृष्टता प्राप्त कर सकते हैं।
चौपाई 6-
नृप सब रहहिं कृपा अभिलाषें। लोकप करहिं प्रीति रुख राखें।।
वन तीनि काल जग माहीं। भूरिभाग दसरथ सम नाहीं।।
अर्थ:
सभी राजा अपने राज्य में कृपा का भाव रखते हैं और लोगों की प्रीति का ध्यान रखते हैं। तीनों लोकों में श्रीराम की भगवानीय प्रकटि होती है। इस समय दसरथ जी जैसे भूरिभाग में कोई और दूसरा महान नहीं होता।
भाव:
यह चौपाई हमें यह सिखने को प्रेरित करती है कि एक सच्चे राजा का कर्तव्य होता है कि वह अपने प्रजानुबंधों की परवाह करे और सभी का भला करने का प्रयास करे। इससे हमें यह भी सिखने को मिलता है कि भगवान की महिमा अनुभव करने के लिए हमें अपने मन को शुद्ध और उदात्त बनाना चाहिए।
चौपाई 7-
मंगलमूल रामु सुत जासू। जो कछु कहिअ थोर सबु तासू।।
रायँ सुभायँ मुकुरु कर लीन्हा। बदनु बिलोकि मुकुटु सम कीन्हा।।
अर्थ:
श्रीराम सुंदर रूपवान और आनंदमयी सुत हैं। जिसका कोई भी वर्णन करने में समर्थ नहीं हो सकता, क्योंकि वह अनन्त मंगल का मूल है। उनकी दिव्यता को देखकर सब विस्मित होते हैं, और मुकुट समान उनके शिर पर ब्लेंड हो जाता है।
भाव:
इस चौपाई से हमें यह सिखने को मिलता है कि भगवान का स्वरूप अनन्त होता है और हमारी स्मृतियों और भावनाओं से अतीत होता है। हमें उनकी महिमा को समझने की कठिनाई हो सकती है, लेकिन हमें उनके दिव्य स्वरूप का समर्पण करना चाहिए।
चौपाई 8-
श्रवन समीप भए सित केसा। मनहुँ जरठपनु अस उपदेसा।।
नृप जुबराजु राम कहुँ देहू। जीवन जनम लाहु किन लेहू।।
अर्थ:
श्रवण के समय सीता माता के केश तो हो गए, लेकिन उनके मन में जरठपन अब तक अपने स्थान पर है। राजा जनक ने राम से कहा, “आपकी कथा सुनकर जीवन और जन्म भी लाभदायक होते हैं।”
भाव:
इस चौपाई से हमें यह सिखने को मिलता है कि श्रीराम की कथा का सुनने से हमारी आत्मा में ऊर्जा और उत्साह बढ़ता है, और हमारा जीवन भी सुखमय और सार्थक हो जाता है। इससे हमें यह भी सिखने को मिलता है कि भगवान के भक्ति और श्रद्धा से ही हम अपने जन्मों के कर्मों को पार कर सकते हैं और मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं।
समृद्धि की प्राप्ति:
ये चौपाइयां हमें समृद्धि की प्राप्ति के उपाय सिखाती हैं। रामायण में भगवान राम के वचनों के पालन से किसी भी दुखभरे परिस्थिति में भी समृद्धि पाई जा सकती है। ये चौपाइयां हमें उत्कृष्ट आचरण, सच्चे दिल से किये गए कर्म, और सद्गुणों के महत्व की बात करती हैं जो समृद्धि की प्राप्ति में महत्वपूर्ण होते हैं।
दुखों से मुक्ति:
इन चौपाइयों का पाठ करने से हम अपने दुखों से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। रामायण के प्रमुख चरित्रों की अद्वितीयता, उनके उदारता और धैर्य में हमें दुखों का समाधान मिलता है। ये चौपाइयां हमें सच्चे प्रेम, सहानुभूति, और त्याग के मार्ग की प्रेरणा देती हैं, जो हमें दुखों से पार करने में मदद करते हैं।
निष्कर्ष:
अष्टक चौपाइयों की महिमा केवल कथा नहीं है, बल्कि वे हमें जीवन के मूल सिद्धांतों का संक्षिप्त और महत्वपूर्ण संदेश प्रदान करते हैं। ये चौपाइयां हमें समृद्धि, सुख, और दुखों से मुक्ति के मार्ग की ओर प्रेरित करती हैं, जिससे हम आदर्श जीवन जी सकते हैं।