भारतीय संस्कृति में धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहारों का महत्व अत्यधिक होता है, और इनमें से एक महत्वपूर्ण त्योहार है – ‘श्रावण पूर्णिमा (Sawan Purnima)’. यह त्योहार हिन्दू पंचांग के आधार पर श्रावण मास के पूर्णिमा दिन मनाया जाता है और यह भारतीय परंपरा में विशेष महत्व रखता है।
इस विशेष दिन पर, बहुत से लोग भगवान सत्यनारायण की पूजा करते हैं और व्रत आचरण करते हैं। भगवान सत्यनारायण की कथा को पढ़ने का अद्वितीय महत्व होता है, जिससे उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, चंद्रमा के हर मास का नामकरण उस महीने की पूर्णिमा के आधार पर होता है जिसमें चंद्रमा स्थित रहता है। ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्र माने जाते हैं और श्रावण एक ऐसा नक्षत्र है। श्रावण मास की पूर्णिमा को विशेष रूप से पवित्र और शुभ दिन माना जाता है। इस दिन की पूजा करने से भगवान शिव अत्यधिक प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करते हैं।
इस श्रावण पूर्णिमा (Shravana Purnima) के दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा करने से घर में शांति, समृद्धि और सुख-शांति की वातावरण बनती है। इस दिन उनकी कथा को पढ़कर उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है, और जीवन में खुशियाँ और समृद्धि का सामर्थ्य बढ़ सकता है।
श्रावण पूर्णिमा 2023 में कब है ? Sawan Purnima Vrat 2023 Date
इस वर्ष, श्रावण पूर्णिमा बुधवार, 30 अगस्त 2023 को है। यह दिन विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा और आशीर्वाद का एक महत्वपूर्ण मौका प्रदान करता है।
श्रावण पूर्णिमा तिथि | Shravana Purnima Tithi
श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को ‘श्रावण पूर्णिमा’ के रूप में जाना जाता है, तो यह भारतीय संस्कृति के पवित्र त्योहारों में से एक है। इस वर्ष, ‘श्रावण पूर्णिमा 2023 (Sawan Purnima 2023)’ की तारीख 30 अगस्त है और यह बुधवार को मनाई जाएगी।
श्रावण पूर्णिमा का व्रत 30 अगस्त 2023 Wednesday को रखा जाएगा।
श्रावण पूर्णिमा तिथि 2023 30 अगस्त की 10:58AM से शुरू होगी
श्रावण पूर्णिमा तिथि 2023 31 अगस्त की 7:05AM तक श्रावण पूर्णिमा खत्म होगी।
इस पवित्र दिन को अनेक नामों से जाना जाता है जैसे कि ‘अवनि अवित्तम’, ‘कजरी पूर्णिमा’, ‘पवित्रोपना’ और ‘कुशनभवपुर दिवस’।
श्रावण पूर्णिमा (Sawan Purnima) के दिन रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का त्योहार भी मनाया जाता है
श्रावण पूर्णिमा का महत्व | Significance of Sawan Purnima
श्रावण पूर्णिमा (Shravana Purnima) का विशेष महत्व हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक आदर्शों के अंतर्गत अत्यधिक है। यह पर्व हमारे संस्कृति में महत्वपूर्ण जगह रखता है और इसके दिन की विशेषता कई प्रकार से मानी जाती है।
श्रावण पूर्णिमा के दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन के स्नान से हम अपने शरीर और मन की शुद्धि करते हैं और नदी को माता गंगा के रूप में पूजनीयता प्रदान करते हैं।
श्रावण पूर्णिमा का दिन पितरों को तर्पण देने का विशेष महत्व है। हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं और उनकी आत्मा की शांति की कामना करते हैं।
यह दिन हिंदू संस्कृति में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस दिन के आगमन से हम अपने धार्मिक और आध्यात्मिक संवाद में गहराई जोड़ते हैं और भगवान के प्रति हमारी भक्ति को अधिक प्रकट करते हैं।
श्रावण पूर्णिमा (Shravana Purnima) पर किए जाने वाले अनुष्ठान भी अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं। इस दिन उपनयन और यज्ञोपवीत संस्कार की रस्में भी निभाई जाती है, जिनसे विद्या और आचार्य की महत्वपूर्णता को प्रकट किया जाता है।
श्रावण पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों का शुद्धिकरण भी विशेष रूप से किया जाता है, जिससे हम अपने आत्मा को शुद्धि की दिशा में अग्रसर करते हैं।
चंद्रदोष से मुक्ति प्राप्ति के लिए भी यह तिथि श्रेष्ठ मानी जाती है, जिससे हम अपने जीवन को संतुलित और समृद्धिशाली बनाने के लिए कदम उठाते हैं।
इस दिन के आगमन पर जनेऊ पहनने वाले हर धर्मावलंबी अपने मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेकर जनेऊ को बदलते हैं, जिससे हम अपने आचार्यों और धर्म के मार्गपर चलते हैं।
इस दिन गोदान का भी अत्यधिक महत्व होता है। गौ माता को समर्पित यह दिन हमें गौ सेवा के महत्व को याद दिलाता है और हमें गौ माता के प्रति आदर और समर्पण की भावना देता है।
यह पर्व धन्य दिन के रूप में भिखारियों को पैसे और कपड़ों का दान देने का भी अवसर प्रदान करता है, जिससे हम दरिद्रता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का पालन करते हैं।
श्रावण पूर्णिमा (Shravana Purnima) के दिन हम अपने आदर्शों, परंपराओं और संस्कृति के महत्व को समझते हैं और उन्हें अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेते हैं। इस दिन के आगमन से हमारे जीवन में सद्गुण और उच्च मूल्यों की प्रेरणा बढ़ जाती है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में श्रावण पूर्णिमा के दिन विभिन्न रूपों में महत्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं:
रक्षा बंधन :-
श्रावण पूर्णिमा (Sawan Purnima) के दिन रक्षा बंधन का त्योहार भी मनाया जाता है, जो भाई-बहन के प्यार और बंधन को संजोते हैं। बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और उसके सुरक्षा और खुशियों की कामना करती हैं, जिसे भाई प्रतिबद्धता के साथ स्वीकारता है। इसके साथ ही, इस दिन भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और उनके प्रति अपनी प्रेम भावनाओं को व्यक्त करते हैं।
कजरी पूर्णिमा: एक विशेष उत्सव
कजरी पूर्णिमा एक महत्वपूर्ण उत्सव है जो कुछ प्रांतों में मनाया जाता है। इस त्योहार का महत्व विभिन्न आयामों में देखा जाता है और इसे विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक अंदाज में मनाया जाता है।
कजरी पूर्णिमा के दिन, हिंदू महिलाएं मिट्टी और पेड़ों की पत्तियों से भरे बर्तनों में जौ की बूँदें बोती हैं। उन्हें यह बर्तन अपने सिर पर रखकर नजदीकी जलाशय में डालने का अनुभव होता है। यह पूजा देवी भगवती के प्रतीक के रूप में की जाती है और इससे अच्छी फसल और पैदावार की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की जाती है।
ये भी देखें – जानिए कजरी तीज (Kajari Teej) क्यों बनायीं जाती है
यह उत्सव प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश राज्यों में मनाया जाता है। श्रावण मास के अमावस्या के 9वें दिन से ही तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं और महिलाएं इस उत्सव का सम्पूर्ण आनंद उठाती हैं। वे लोक गीत गाकर और कजरी पूर्णिमा व्रत की कहानी सुनाकर इसे मनाती हैं। इस व्रत का पालन करने से माताएं अपने पुत्रों की समृद्धि और दीर्घायु की कामना करती हैं।
नारियाल पूर्णिमा: समुद्र की पूजा
यह त्योहार विशेष रूप से तटीय प्रांतों में मनाया जाता है। भक्त समुद्र की पूजा करते हैं और तट की यात्रा करते हैं। इस दिन वे वरुण देवता की पूजा करते हैं, जो जल के देवता होते हैं। इस पूजा से वे उनके आशीर्वाद की प्राप्ति करते हैं और समुद्र के विभिन्न खतरों से बचाव के लिए प्रार्थना करते हैं। नारियाल पूर्णिमा के दिन, समुद्र के किनारे नारियाल (नारियेल) का अविशेष पूजन किया जाता है।
अमरनाथ यात्रा का समापन
श्रावण पूर्णिमा का दिन अमरनाथ यात्रा के समापन का भी होता है। इस यात्रा के दौरान कांवरिए भगवान शिव की पूजा करते हैं और शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। यह उनकी यात्रा को समृद्धि और सुरक्षा के साथ समाप्त करने का अवसर होता है।
पवित्रोपना: श्रावण पूर्णिमा का अधिक महत्व
पवित्रोपना गुजराती त्योहार है जो श्रावण पूर्णिमा (Sawan Purnima) को मनाया जाता है। इस अवसर पर भक्त भगवान शिव की पूजा करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं। इस दिन का पालन करने से विशेष प्रकार के पुण्य प्राप्त होते हैं और अशुभ कार्यों से मुक्ति मिलती है।
अवनी अवित्तम:
तमिलनाडु, केरल, उड़ीसा और महाराष्ट्र में श्रावण पूर्णिमा को ‘अवनी अवित्तम’ के नाम से जाना जाता है। इन स्थानों के यजुर्वेद पढ़ने वाले ब्राह्मण इस दिन अवनी अवित्तम के रूप में इसे मनाते हैं। इस दिन वे पुराने पापों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए महा संकल्प लेते हैं और स्नान के बाद यज्ञोपवीत धारण करते हैं। मान्यता है कि इस दिन से यजुर्वेदी ब्राह्मण अगले महीने तक यजुर्वेद पाठ पढ़ने की शुरुआत कर सकते हैं। इस दिन भगवान विष्णु ने ज्ञान के देवता हयग्रीव के रूप में धरती पर अवतार लिया था।
कुशनभवपुर दिवस:
अयोध्या और प्रयागराज में श्रावण पूर्णिमा को ‘कुशनभवपुर दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। प्राचीन काल में सुल्तानपुर को ‘कुशनभवपुर’ के नाम से जाना जाता था और इसी स्थान पर श्रावण पूर्णिमा (Sawan Purnima) को कुशनभवपुर दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
ये भी देखें – Shravana Putrada Ekadashi 2023
श्रावण पूर्णिमा पूजा विधि | Shravana Purnima Vrat Puja Vidhi
श्रावण पूर्णिमा (Shravana Purnima) के दिन सुबह किसी पवित्र नदी में स्नान करके साफ वस्त्र पहनते हैं।
गाय को चारा और चीटियों, मछलियों को आटा दान करना शुभ माना जाता है।
भगवान सत्यनारायण की मूर्ति या प्रतिमा को गंगाजल से छिड़ककर चौकी पर स्थापित किया जाता है।
मूर्ति को पीले रंग के वस्त्र, पीले फल, पीले रंग के पुष्प अर्पित किए जाते हैं और उनकी पूजा की जाती है।
भगवान सत्यनारायण की कथा को पढ़ा या सुना जाता है।
कथा पढ़ने के बाद चरणामृत और पंजीरी का भोग लगाया जाता है और इस प्रसाद को बांटा जाता है।
विधि विधान से श्रावण पूर्णिमा व्रत का पालन किया जाने पर वर्ष भर के वैदिक कामों की भूल भी माफ होती है और व्रतों के समान फल मिलता है।
यह व्रत हमें आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व की महत्वपूर्ण शिक्षा देता है और समुद्र, प्राकृति और देवताओं की महत्वपूर्णता को प्रकट करता है।
श्रावण पूर्णिमा व्रत कथा | Sawan Purnima Vrat Katha
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है, एक नगर में राजा तुंगध्वज नामक शासक राज करते थे। एक दिन, राजा शिकार करने के लिए जंगल गए, लेकिन वह वहां थक कर बैठ गए, बरगद के पेड़ के नीचे। वहां पर उन्होंने कुछ लोगों को भगवान की पूजा करते देखा। लालच में इन्होंने भगवान की पूजा को नजरअंदाज कर दिया और कथा सुनने की बजाय वे शिकार करने के लिए वहां से चले गए।
गांव वाले उनके पास आए और उन्होंने उन्हें आदरपूर्वक प्रसाद दिया। लेकिन राजा का घमंड इतना अधिक था कि वह प्रसाद को त्यागकर चले गए। थोड़ी देर बाद, उन्होंने देखा कि एक दूसरे राज्य के राजा ने उनके राज्य पर हमला करके सब कुछ नष्ट कर दिया। यह घातक परिस्थिति राजा के लिए एक सबक साबित हुई कि भगवान की पूजा और कथा में लापरवाही करने के परिणामस्वरूप यह हानिकारक परिस्थिति उत्पन्न हुई।
इसके बाद, राजा अपनी गलतियों को समझते हुए गांव वालों से भगवान के प्रसाद की मांग करने उनके पास पहुंचे। उनके मन में पश्चाताप की भावना थी और उन्होंने अपनी भूल की क्षमा मांगकर प्रसाद को स्वीकार किया। भगवान सत्यनारायण ने राजा की माफी स्वीकार की और सब कुछ पहले जैसा कर दिया।
राजा ने इस घटना से सीख ली कि अपने घमंड को त्यागकर भगवान की पूजा और कथा को महत्व देना आवश्यक है। इसके बाद, राजा ने बहुत समय तक अपनी राजसत्ता का आनंद लिया और उनके मरने के बाद उन्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई।
इसका सिखाने वाला संदेश है कि भगवान की पूजा, भक्ति और कथा का महत्व अत्यधिक होता है। यह एक व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का कारण बन सकता है। इसलिए हमें हमेशा भगवान की भक्ति में लगने का प्रयास करना चाहिए और उनकी कथाएं सुनकर उनके दिव्य आशीर्वाद को प्राप्त करना चाहिए।
निष्कर्ष | Conclusion
श्रावण पूर्णिमा (Sawan Purnima) भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण और पवित्र त्योहार है, जो भगवान शिव और परमात्मा की पूजा के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है। इस दिन का उत्सव मनाकर हम अपनी परंपराओं को जीवित रखते हैं और धार्मिक भावनाओं को बढ़ावा देते हैं।