सावन-पुत्रदा-एकादशी

Shravana Putrada Ekadashi 2023 | पुत्रदा एकादशी व्रत, कथा, तिथि, महत्त्व

धार्मिक और परंपरागत महत्व वाले भारतीय त्योहारों की बौछार से जुड़े एक महत्वपूर्ण व्रत है ‘सावन पुत्रदा एकादशी (Shravana Putrada Ekadashi)’. यह व्रत हिन्दू धर्म में प्रतिवर्ष ‘शुक्ल पक्ष’ के एकादशी तिथि को मनाया जाता है और भगवान विष्णु की पूजा एवं भक्ति का महत्वपूर्ण अवसर है।

पुत्रदा एकादशी, जिसे पवित्रा एकादशी और पवित्रोपना एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार जुलाई से अगस्त के बीच आती है।

सावन पुत्रदा एकादशी (Shravana Putrada Ekadashi) का महत्वपूर्ण संदेश है कि माता-पिता के प्रति संकल्प और श्रद्धा के साथ किया गया व्रत परम पुत्र की प्राप्ति में सहायक होता है। ‘पुत्रदा’ का अर्थ होता है ‘पुत्र का दान’, इसका आदर्श भगवान विष्णु के द्वारा दिया गया है जिन्होंने एक बार महात्मा दुन्दुभि के सवाल पर इस व्रत के महत्व का वर्णन किया था।

सावन पुत्रदा एकादशी 2023 कब है ? | Shravana Putrada Ekadashi 2023 Date

यह व्रत हिन्दू धर्म में प्रतिवर्ष ‘शुक्ल पक्ष’ के एकादशी तिथि को मनाया जाता है। यह एक साल में दो बार आता है। एक व्रत पौष पुत्रदा एकादशी का होता है, यह इंग्लिश कैलेंडर के अनुसार दिसंबर या जनवरी में पढ़ता है और दूसरा व्रत सावन पुत्रदा एकादशी का होता है जो जुलाई या अगस्त माह में पढ़ता है। वही हिन्दू केलिन्डर के अनुसार तो सावन पुत्रदा एकादशी पहले आती है और पौष पुत्रदा एकादशी बाद में आती है।

इस वर्ष सावन पुत्रदा एकादशी (Shravana Putrada Ekadashi 2023) का व्रत 27 अगस्त रविवार को है. पंचांग के अनुसार, सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 26 अगस्त की देर रात 12 बजकर 08 मिनट से 27 अगस्त की रात 09 बजकर 32​ मिनट तक मान्य रहेगी. विष्णु जी की पूजा – सुबह 07.33 – सुबह 10.46

महत्त्वपूर्ण समय :-

श्रावण पुत्रदा एकादशी 2023 पर महत्वपूर्ण समय

सूर्योदय
27 अगस्त 2023, सुबह 6:11 बजे
सूर्यास्त
27 अगस्त 2023, शाम 6:45 बजे
एकादशी तिथि आरंभ
27 अगस्त 2023 12:08 पूर्वाह्न
एकादशी तिथि समाप्त
27 अगस्त 2023 9:32 PM
हरि वासर अंत क्षण
28 अगस्त, 2023 2:45 पूर्वाह्न
द्वादशी समाप्ति क्षण
28 अगस्त 2023 शाम 6:23 बजे
पारण का समय
28 अगस्त, प्रातः 6:11, अगस्त 28, प्रातः 8:42

सावन पुत्रदा एकादशी का महत्त्व | Significance of Putrada Ekadashi

यह व्रत भगवान विष्णु की पूजा और भक्ति का अवसर है और हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस व्रत का महत्व विभिन्न प्राचीन पुराणों और ग्रंथों में वर्णित है और इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कथाएं हैं।

सावन पुत्रदा एकादशी को “पुत्रदा” कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है ‘पुत्र का दान’। इसका मुख्य महत्व वह भक्तों के लिए रखता है जो संतान सुख की प्राप्ति की कामना रखते हैं। यह व्रत उनकी इच्छाओं को पूरी करने में सहायक माना जाता है और इसे विशेष भक्ति और श्रद्धा के साथ किया जाता है।

पौराणिक कथा:

‘भविष्य पुराण’ के अनुसार, राजा युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण के बीच हुई एक गंभीर चर्चा में सावन पुत्रदा एकादशी के महत्व का वर्णन किया गया है। इस चर्चा में भगवान कृष्ण ने इस व्रत के अनुष्ठान और लाभों के बारे में विस्तार से बताया। यह व्रत निःसंतान दंपत्तियों के लिए पुत्र प्राप्ति की शक्ति प्रदान करता है और उनकी कामना को पूरी करने में सहायक होता है।

आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व:

सावन पुत्रदा एकादशी व्रत हिन्दू समाज में न केवल पुत्र प्राप्ति की कामना को पूरी करता है, बल्कि धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह व्रत माता-पिता के प्रति समर्पण और आदर्श संबंध की महत्वपूर्णता को प्रकट करता है और संस्कृति और परंपरागत मूल्यों के प्रति भक्तों की आस्था को स्थापित करता है।

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सावन पुत्रदा एकादशी पूजा विधि और अनुष्ठान | Putrada Ekadashi Vrat Puja Vidhi

सावन पुत्रदा एकादशी के व्रत के दौरान व्रती व्यक्ति को नियमित प्रात: काल में स्नान करना चाहिए, और फिर विष्णु जी की पूजा करते हुए व्रत का पालन करना चाहिए। व्रती व्यक्ति को एक बार भोजन करने की अनुमति होती है, जिसे ‘नीम्बू पानी’ के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा, व्रत के दिन व्रती को गोमूत्र या गंगाजल से पूजा का सामग्री धोकर विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए। इसे विशेष भक्ति और श्रद्धा के साथ किया जाता है, जिससे व्रती की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है।

श्रावण पुत्रदा एकादशी के अनुष्ठान:

व्रतकर्ता को दशमी के दिन से व्रत शुरू करना चाहिए और उसे व्रत के दौरान सिर्फ ‘सात्विक’ आहार का सेवन करना चाहिए।
व्रत की दशमी रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है।
एकादशी के दिन सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक उपवास का पालन किया जाता है, और कोई भोजन नहीं खाया जाता है।
व्रतकर्ता को एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद व्रत खोलना चाहिए।
व्रत के दौरान भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, जिसमें मूर्ति को पूजा स्थल पर रखा जाता है और पंचामृत अभिषेक किया जाता है।
व्रतकर्ता भगवान की स्तुति, भजन और भक्ति गीतों के साथ रात भर जागते हैं और मंदिरों में भी जाते हैं।
‘झूलन उत्सव’ भी इस व्रत से संबंधित है, जो श्रावण पूर्णिमा से शुरू होता है। इसमें भगवान कृष्ण और देवी राधा की मूर्तियों को झूले में सजाकर पूजा की जाती है।
यह व्रत पुत्र की प्राप्ति के अलावा भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति और पापों के क्षमापण के लिए भी महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष | Conclusion

सावन पुत्रदा एकादशी का व्रत हिन्दू धर्म में परंपरागत महत्व और भक्ति के प्रतीक के रूप में माना जाता है। यह व्रत पुत्र की प्राप्ति की कामना रखने वालों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है और यह धार्मिक और परंपरागत मूल्यों का पालन करने का एक तरीका है। इस एकादशी पर, हमें अपने माता-पिता के प्रति समर्पण और श्रद्धा के साथ भगवान विष्णु की पूजा करके उनकी कृपा और आशीर्वाद का स्वागत करना चाहिए।

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