श्री हनुमान तांडव स्तोत्रम (Shree Hanuman Tandav Stotram) संस्कृत में लिखित पाठ है जो भगवान हनुमान को समर्पित है। यह एक शक्तिशाली और पवित्र पाठ है जिसके बारे में कहा जाता है कि जो लोग इसका नियमित पाठ करते हैं उनके लिए इसके कई लाभ होते हैं।
ऐसा माना जाता है कि स्तोत्र की रचना लोकेश्वराख्यभाट्टेंन ने की थी। यह एक लंबा और जटिल पाठ है, लेकिन इसे तीन मुख्य भागों में विभाजित किया गया है:-
- पहले भाग में हनुमान की शारीरिक बनावट और उनकी शक्तियों का वर्णन है।
- दूसरे भाग में हनुमान की वीरता और भगवान राम के प्रति उनकी भक्ति का वर्णन है।
- तीसरे भाग में स्तोत्र का पाठ करने के लाभों का वर्णन किया गया है
श्री हनुमान तांडव स्तोत्र का पाठ मंगलवार और शनिवार को किया जाता है, लेकिन इसे किसी भी दिन पढ़ा जा सकता है। ऐसा कहा जाता है कि स्तोत्र का पाठ करने का सबसे अच्छा समय सूर्योदय या सूर्यास्त का होता है। इसके अतिरिक्त हर व्यक्ति को हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) एवं बजराणग बाण का पाठ भी प्रतिदिन करना चाहिए
Shree Hanuman Tandav Stotram Benefits। श्री हनुमान तांडव स्तोत्र के पाठ से लाभ
- सभी प्रकार के खतरे और नुकसान से सुरक्षा.
- धन और समृद्धि की प्रचुरता.
- सभी प्रयासों में सफलता.
- शत्रुओं पर विजय.
- भय और चिंता से मुक्ति.
- मोक्ष की प्राप्ति, या जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति।
Shree Hanuman Tandav Stotram Lyrics | श्री हनुमान तांडव स्तोत्र पाठ
वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम् । रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥
भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम् ।
सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं, समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम् ॥1॥
सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न ।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ॥ 2॥
सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ ।
कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम् ॥ 3 ॥
सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः, कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम् ।
प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः ॥ 4॥
प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं, फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत् ।
विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्, सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम् ॥ 5॥
नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम् ।
सुपुच्छगुच्छतुच्छलङ्कदाहकं सुनायकं विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम् ॥ 6॥
रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम् ।
विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम् सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम् ॥ 7॥
नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः ।
सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम् ॥ 8॥
इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः ।
प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह ॥ 9॥
नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे । लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥ 10॥
॥ इति श्री हनुमत तांडव स्तोत्र ॥