रामायण में युद्ध आरम्भ होने से पहले भगवान श्री राम ने अंतिम बार शांति प्रस्ताव रखने के लिए शांति दूत के रूप में अंगद जी को भेजा।
अंगद जी ने इसे स्वीकार करते हुए रावण की राज्यसभा में प्रभु श्री राम का सन्देश ले कर चले जाते है।
वंहा अहंकार में मद श्री राम के भेजे सन्देश का उपहास उडाता है और अंगद जी को अपमानित करता है
रावण से वार्तालाप के दौरान रावण अंगद जी ने रावण से कहा-
“जो पहले से ही मारा हुआ है उसे मारने का क्या फायदा”
इस कथन का तात्पर्य ये है कि सिर्फ साँस लेने वालों का जीवित नहीं माना जाता, साँस तो लुहार के धौंकनी भी लेती है,
इसे आगे बढ़ाते हुए अंगद जे ने मृत्यु के 14 प्रकार बताये है-
कौल कामबस कृपिन विमूढ़ा। अतिदरिद्र अजसि अतिबूढ़ा।।
सदारोगबस संतत क्रोधी। विष्णु विमुख श्रुति संत विरोधी।।
तनुपोषक निंदक अघखानी। जीवत शव सम चौदह प्रानी।।
उपरोक्त श्लोक के विस्तार से इस प्रकार है-
#1 अत्यंत काम में डूबा व्यक्ति
अंगद जी के अनुसार जो व्यक्ति अत्यंत भोगी और कामवासना में लिप्त रहता है जो व्यक्ति अध्यात्म में समय न देकर हमेशा वासना में लिप्त रहता है जिसकी इच्छाओं का कोई अंत न हो तथा जो अपना सम्पूर्ण जीवन अपने इच्छाओ के अधीन रह कर हि जी जीता है वह जीवित होकर भी मृत के सामान होता है
#2 नकारात्मक व्यक्ति या वाममार्गी
अंगद जी ने उस व्यक्ति को भी मृत के सामान ठहराया है जो संसार की हर बात में नकारात्मकता ही खोजता है तथा नियमो और परंपराओं का उलंघन करता हो सदैव उलटी चल चलता हो
#3 अत्यधिक कंजूस व्यक्ति
जो व्यक्ति दानी नहीं है, जब व्यक्ति में कंजुसाई की सीमा इतनी बढ़ जाये कि धर्म कार्य करने और आर्थिक रूप से जान कलयाण के कार्यों को करने से बचने लगे ऐसा व्यक्ति मृत के सामान है
#4 अत्यधिक गरीब व्यक्ति
कहा जाता ही कि दरिद्रता या गरीबी सबसे बड़ा श्राप होती है, जो मनुष्य धन से हिन् हो, जिसमे आत्मविश्वास की कमी हो वह भी मृत के सामान मन गया है
अत्यंत दरिद्र व्यक्ति को ढेस नहीं पहुंचना चाहिए, क्योंकि वह पहले से ही मरा हुआ होता है ऐसे व्यक्ति मदद के हक़दार होते है
#5 मुर्ख व्यक्ति
अंगद जी के अनुसार ऐसा व्यक्ति जो अपने बुद्धि-विवेक का इस्तेमाल करना नहीं जानता है जो स्वयं अपने निर्णय लेने में असक्षम हो तथा अपने कामो को समझने और निर्णय लेने में दुसरो पर आश्रित रहता हो ऐसा व्यक्ति भी जीवित होक भी मरे के सामान होता है अत्यंत मुर्ख व्यक्ति अध्यात्म को नहीं समझता।
#6 निरंतर क्रोध में रहने वाला व्यक्ति
हर समय क्रोध में रहने वाला व्यक्ति भी मृत के बराबर ही होता है।
जो व्यक्ति छोटी छोटी बातो पर गुस्सा करते है अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण नहीं कर पाते है और जो व्यक्ति अपने बुद्धि और मन पर नियत्रण नहीं कर पता वह जीवित होकर भी मृत के सामान होता है
#7 परमात्मा विरोधी व्यक्ति
जिस व्यक्ति ने अपने मन में यह विश्वास मान लिया हो की कोई ईश्वर या परमात्मा की शक्ति नहीं है और ऐसा सोचता है कि हम जो करते हैं, वही होता है, संसार हम ही चला रहे हैं, तथा परमात्मा में आस्था न रखे वह मृत के समान मन गया है
#8 अत्यंत स्वार्थी व्यक्ति
एक व्यक्ति तब जीवित माना जाता है जब वह अपने आसपास के लोगों और संसार के प्रति संवेदना रखता है। जब वह अपने स्वार्थों से ऊपर उठकर दूसरों की मदद करने के लिए तैयार होता है।
जब वह दूसरों के साथ सहानुभूति और करुणा रखता है। लेकिन जब कोई व्यक्ति अपने स्वार्थों के लिए ही जीता है, और दूसरों के प्रति उसकी कोई संवेदना नहीं होती, तो वह मृतक समान होता है।
जो व्यक्ति सांसारिक सुख जैसे की खान-पैन महंगी गाड़िया कपडे में ही लिप्त रहते है या हर समय इसे पाने के बारे में सोचते रहते है मृत के समान है
शरीर को अपना मानकर उसमें रत रहना मूर्खता है, क्योंकि यह शरीर विनाशी है, नष्ट होने वाला है।
#9 समाज से तिरस्कृत व्यक्ति
जिस व्यक्ति को संसार में बदनामी मिली हुई है, वह भी मरा हुआ है।
जो घर-परिवार, कुटुंब-समाज, नगर-राष्ट्र, किसी भी ईकाई में सम्मान नहीं पाता, वह व्यक्ति भी मृत समान ही होता है।
#10 अत्यंत रोगी
जो व्यक्ति निरंतर रोगी रहता है, वह भी मरा हुआ है।
स्वस्थ शरीर के अभाव में मन विचलित रहता है। नकारात्मकता हावी हो जाती है। व्यक्ति मृत्यु की कामना में लग जाता है। जीवित होते हुए भी रोगी व्यक्ति जीवन के आनंद से वंचित रह जाता है।
#11 अति बूढ़ा व्यक्ति
अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मृत समान होता है, क्योंकि वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है।
शरीर और बुद्धि, दोनों अक्षम हो जाते हैं। ऐसे में कई बार वह स्वयं और उसके परिजन ही उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं, ताकि उसे इन कष्टों से मुक्ति मिल सके।
#12 पाप कर्म करने वाला
जो व्यक्ति पाप कर्मों से अर्जित धन से अपना और परिवार का पालन-पोषण करता है, वह व्यक्ति भी मृत समान ही है।
उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी के समान हो जाते हैं। हमेशा मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके ही धन प्राप्त करना चाहिए।
पाप की कमाई पाप में ही जाती है और पाप की कमाई से नीच गोत्र, निगोद की प्राप्ति होती है।
#13 अकारण निंदा करने वाला
अकारण निंदा करने वाला व्यक्ति भी मरा हुआ होता है।
जिसे दूसरों में सिर्फ कमियाँ ही नजर आती हैं, जो व्यक्ति किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकता है
ऐसा व्यक्ति जो किसी के पास भी बैठे, तो सिर्फ किसी न किसी की बुराई ही करे, वह व्यक्ति भी मृत समान होता है। परनिंदा करने से नीच गोत्र का बंध होता है।
#14 श्रुति संत विरोधी:-
जो संत, ग्रंथ, पुराणों का विरोधी है, वह भी मृत समान है। श्रुत और संत, समाज में अनाचार पर नियंत्रण (ब्रेक) का काम करते हैं।
अगर गाड़ी में ब्रेक न हो, तो कहीं भी गिरकर एक्सीडेंट हो सकता है। वैसे ही समाज को संतों की जरूरत होती है, वरना समाज में अनाचार पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाएगा।
साथ ही वह व्यक्ति अथवा मनुष्य भी मृतक समान है जो सनातन अर्थात अपने धर्म का ज्ञान रूपी प्रसाद अन्य लोगों में नहीं बांटता है।
सनातन ज्ञान एक अमृत है, जो व्यक्ति को एक वास्तविक व्यक्ति बनने में मदद करता है। यह ज्ञान व्यक्ति को दूसरों के प्रति संवेदना और करुणा का भाव विकसित करने में मदद करता है। यह ज्ञान व्यक्ति को दूसरों की मदद करने के लिए प्रेरित करता है। यह ज्ञान व्यक्ति को अपने स्वार्थों से ऊपर उठकर दूसरों के लिए जीने के लिए प्रेरित करता है।
इसलिए सभी लोगों को सनातन ज्ञान का अध्ययन करना चाहिए, और इस ज्ञान को दूसरों के साथ भी साझा करना चाहिए।
ये थे अंगद जी द्वारा रावण को बताये गए मृत्यु के 14 प्रकार।
मनुष्य को उपरोक्त 14 दुर्गणों से दूर रहना चाहिए और अपना जीवन मृत व्यक्ति के समान जीने से बचना चाहिए