इस साल होली का पर्व 25 मार्च को मनाया जाएगा और इससे एक दिन पहले यानि 24 मार्च को होलिका दहन की पूजा होगी.
होलिका दहन के दिन लकड़ियों और उपलों से होलिका बनाई जाती है. फिर पूजा के बाद उसे जलाया जाता है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होलिका दहन के लिए आम की लकड़ी का भूलकर भी उपयोग नहीं करना चाहिए. ऐसा करना बहुत अशुभ माना गया है.
धर्म शास्त्रों के मुताबिक होलिका दहन के लिए वट के पेड़ की लकड़ी उपयोग करना व जलाना भी अशुभ माना जाता है. इसलिए वट के पेड़ की लकड़ी भूलकर भी ना लाएं.
होलिका दहन के लिए एरंड और गूलर के पेड़ की लकड़ियां उपयोग करना शुभ माना जाता है. क्योंकि जब एरंड और गूलर के पत्ते झड़ने लगते हैं और उन्हें ना जलाया जाए तो इनमें कीड़ा लग जाता है.
एरंड और गूलर की लकड़ी की यह खासियत है कि इन्हें जलाने से हवा शुद्ध होती है. फाल्गुन के महीने में मच्छर और बैक्टीरिया पनपते हैं, ऐसे में एरंड और गूलर की लकड़ी जलाने से मच्छर व बैक्टीरिया खत्म होते हैं और हवा भी शुद्ध होती है.
होलिका दहन के लिए लकड़ियों के साथ ही गाय के गोबर से बने छोटे-छोटे उपले भी उपयोग किए जाते हैं जिन्हें भल्ले कहा जाता है. इनका उपयोग करना शुभ माना गया है.