हमारे वेदों और उपनिष्दों में एक बहुत ही सुन्दर मंत्र का उल्लेख मिलता है जो है “ॐ पूर्णमदः मंत्र”
यह एक शनि मंत्र है और ईशावास्य उपनिषद में प्रमुख रूप से इस मंत्र का वर्णन मिलता है
“जो दिखाई देता है, वह अनन्त है। जो अदृश्य है, वह भी अनन्त है। अनंत से ही अपरिमित आया है, फिर भी अनंत होने के कारण केवल अनंत ही बचता है।”
यह आश्चर्यचकित करने वाला गणित है ! आप ही सोचिये हमे पढाया जाता है की शून्य से शून्य का जमा, घटा, भागाकार आदी सब का फल शून्य मिलता है ।
ब्रह्मांड सम्पूर्ण, अविनाशी और असीम है, नए चीजों के आगमन से नष्ट होने वाले की अगली पीढ़ी के रूप में निरंतर पुनर्जन्म करता है।
यह स्वयंभू है और सभी वस्तुओं की उत्पत्ति का उद्गम स्थान है, जिसमें अनंत शक्ति और सर्वव्यापकता होती है।
इसके अतिरिक्त, ब्रह्मांड की पूर्णता हमारे अंदर भी प्रतिबिंबित होती है। हम भी ब्रह्मांड से उत्पन्न होते हैं, और हममें भी वही गुण और विशेषताएं होती हैं जो ब्रह्मांड में हैं। ब्रह्मांड में मौजूद सभी वस्तुएं हमारे भी अंदर मौजूद होती हैं।