क्यों की जाति है दीपावली पर माता लक्ष्मी की पूजा?
कार्तिक आमावस्या (दीपावली) के दिन सुमद्र मंथन के दौरान महालक्ष्मी का जन्मदिन होने के कारण दीपावली को मां लक्ष्मी की पूजा की जाति है।
जाने पुरी कहानी –
युगो पुरानी बात है। जब समुद्र मंथन नही हुआ था।
उस दौरान देवता और राक्षसों के बीच आए दिन युद्ध होते रहते थे। कभी देवता राक्षसों पर भारी पड़ते तो कभी राक्षस। एक बार देवता राक्षसों पर भारी पड़ रहे थे। जिसके कारण राक्षस पाताल लोक में भागकर छिप गए।
राक्षस जानते थे कि वे इतने शक्तिशाली नही कि देवताओं से लड़ सकें। देवताओं पर महालक्ष्मी अपनी कृपा बरसा रही थी। मां लक्ष्मी अपने 8 रूपों के साथ इंद्रलोक में थी। जिसके कारण देवताओं में अंहकार भरा हुआ था।
एक दिन दुर्वासा ऋषि समामन की माला पहनकर स्वर्ग की तरफ जा रहे थे। रास्ते में इंद्र अपने ऐरावत हाथी के साथ आते हुए दिखाई दिए। इंद्र को देखकर ऋषि प्रसन्न हुए और गले कि माला उतार कर इंद्र की ओर फेकी। लेकिन इंद्र मस्त थे। उन्होनें ऋषि को प्रणाम तो किया लेकिन माला नही संभाल पाएं और वह ऐरावत के सिर में डाल गई।
हाथी को अपने सिर में कुछ होने का अनुभव हुआ और उसने तुंरत सिर हिला दिया था। जिससे माला जमीन पर गिर गई और पैरों से कुचल गई। यह देखकर वे क्रोधित हो गए। दुर्वासा ने इंद्र को श्राप देते हुए कहा कि जिस अंहकार में हो, वह तेरे पास से तुरंत पाताललोक चली जाएगी। श्राप के कारण लक्ष्मी स्वर्गलोक छोड़कर पाताल लोक चली गई।
लक्ष्मी के चले जाने से इंद्र व अन्य देवता कमजोर हो गए। राक्षसों ने माता लक्ष्मी को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए। राक्षस बलशाली हो गए और इंद्रलोक पाने की जुगत भिड़ाने लगे।
उधर लक्ष्मी के जाने के बाद में इन्द्र देवगुरु बृहस्पति और अन्य देवताओं के साथ ब्रह्माजी के पास पहुंचे। ब्रह्माजी ने लक्ष्मी को वापस बुलाने के लिए समुद्र मंथन की युक्ति बताई।
देवताओं और असुरों के बीच मेंं समुद्र मंथन हुआ।
हजारों साल चले इस मंथन में एक दिन महालक्ष्मी निकली। उस दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या थी। लक्ष्मी को पाकर देवता एक बार फिर से बलशाली हो गए।
माता लक्ष्मी का समुद्र मंथन से आगमन हो रहा था, सभी देवता हाथ जोड़कर आराधना कर रहे थे। भगवान विष्णु भी उनकी आराधना कर रहे थे।
इसी कारण कार्तिक आमावस्या के दिन महालक्ष्मी की पूजा की जाती है।
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